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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मावती के ध्वंसावशेष : ४३ पहने हुए है और बाँयी कलाई में कंगन जैसा कोई आभूषण है। माणिभद्र यक्ष की प्रतिमा को देखने के पश्चात ऐसा विचार बनता है कि यह किसी कठोर स्वभाव वाले बलिष्ठ व्यक्ति की हो । इसे देख कर कोमल भावों की कल्पना नहीं की जा सकती, यद्यपि यक्ष धन का भण्डारी और जन-जन पर दया की वर्षा करने वाला देवता है। माणिभद्र यक्ष की चरण-चौकी पर एक महत्वपूर्ण अभिलेख अंकित है। जिस भाग पर यह अभिलेख उत्कीर्ण किया गया है उसकी लम्बाई एक फुट नौ इंच और चौड़ाई नौ इंच मात्र है । इस प्रकार खण्ड का ऊपरी भाग तनिक खण्डित है। परिणामस्वरूप ऊपर की पंक्ति के अक्षरों के ऊपर लगने वाली मात्राएँ या तो मिट गयी हैं, या कुछ धूमिल और अस्पष्ट हो गयी हैं। इसी कारण प्रथम पंक्ति के अक्षरों को सही-सही पढ़ लेने में कुछ कठिनाई उपस्थित हो गयी है। यह अभिलेख ब्राह्मी लिपि तथा संस्कृत भाषा में है । लिपि के आधार पर इतिहासकारों ने इस अभिलेख का समय ईसा की प्रथम अथवा द्वितीय शताब्दी निर्धारित किया है । मूर्तिकला के नमूने से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है । यह अभिलेख कुल मिला कर छः पंक्तियों में है । यह गद्य में लिखा गया है। इस अभिलेख की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें इस बात का उल्लेख भी किया गया है कि यह कब स्थापित किया गया था । इतिहासकार के लिए तो यह बहुत बड़ी बात है । ऐतिहासिक तथ्यों के ठीक-ठीक उल्लेख के लिए तो यह एक ठोस प्रमाण है। बताया गया है कि शिवनंदी राजा के शासन के चौथे वर्ष में एक समिति के सभासदों ने देवता की तुष्टि हेतु ग्रीष्म के द्वितीय पक्ष की द्वादशी को इस प्रतिमा की स्थापना की थी। इसकी स्थापना किसी एक धनवान व्यक्ति ने नहीं कर दी, अपितु इसके लिए अनेक व्यक्तियों ने दान दिया था। यही कारण है कि इस अभिलेख के अन्त में इष्टदेव से उन व्यक्तियों के कल्याण के लिए अर्चना की गयी है जिन्होंने इसके लिए दान दिया था। इतना ही नहीं इससे तो ऐसा प्रतीत होता है कि कल्याण की कामना के साथ-साथ उन दानवीरों की यश गाथा भी गायी गयी है जिन्होंने इसके लिए दान दिया। इसमें इन धनदाताओं के नामों का भी उल्लेख है। इस अभिलेख का पाठ नीचे दिया जा रहा है। श्री भो० वा० गर्दे ने कुछ अस्पष्ट अथवा मिटे हुए अक्षरों की रचना अपने अनुमान से की है, जानकारी के लिए उन रूपों को कोष्ठक के अन्तर्गत रखा गया है। इसका पाठ पंक्ति के अनुसार दिया जा रहा है। प्रथम पंक्ति (रा) ज्ञाः श्वा (मि) शिव (न) न्दिस्य संव (त्स) रे चतु (') ग्र (1) षम पक्ष () द्विवतीयेर (f) दवस () द्वितीय पंक्ति द्व (r) द (शे) १०२ यतस्य पूर्वाय () गोष्ठ्या माणिभद्र भक्ता गर्मसुखिता भगवतो। For Private and Personal Use Only
SR No.020523
Book TitlePadmavati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sharma
PublisherMadhyapradesh Hingi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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