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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६ : पद्मावती वैसा ही त्यागमय जीवन बिताना उचित समझा। उन्होंने जीवन में शान-शौकत को विशेष महत्व नहीं दिया। किन्तु वे परिश्रमशील जीवन बिताते थे, और बड़े-बड़े कार्य किये। पद्मावती एक सुन्दर नगरी थी, और नाग सौन्दर्य के प्रेमी थे। उन्होंने पद्मावती की टकसाल में सिक्कों का निर्माण किया। कुशनों के सिक्कों का बहिष्कार करके प्राचीन हिन्दू ढंग के सिक्के बनवाये । उनकी संख्या इतनी अधिक थी, कि आज भी पद्मावती में बरसात के मौसम में सिक्के मिल जाते हैं। भारशिव राज्य लोलुप नहीं थे। उन्होंने अन्य शासकों को भी इस बात की स्वतंत्रता दे दी होगी, कि वे अपने सिक्के स्वयं ही बना लें । वे प्रजातंत्र में आस्था रखने वाले थे, और जानबूझ कर अन्य राज्यों को सुविधा प्रदान करने में गौरव का अनुभव करते थे। उन्हें दरिद्रता से घृणा न थी। भारशिवों के चारों ओर हिन्दू राज्य छाये हुये थे। इस काल में उनका एक गण बन गया था। ऐसा प्रतीत होता है कि शिव के बनाये हुए नन्दी या गणों में वे ही प्रमुख थे । वे सर्वत्र स्वतंत्रता का प्रचार करते थे तथा उसकी रक्षा भी करते थे । अश्वमेध यज्ञों के आधार पर यह कहा जा सकता है, कि भारशिव एकछत्र शासन स्थापित करना चाहते थे, किन्तु गणराज्यों की उपस्थिति यह सिद्ध कर देती है, कि उन्होंने राज्य-लोलुपता से प्रभावित हो कर ऐसा नहीं किया। भारशिवों की धर्म में बड़ी आस्था थी, और वे राष्ट्रीय दृष्टिकोण से त्यागशील जीवन व्यतीत करते थे। भारशिवों ने अपना उद्देश्य बना कर कुषणों के लोलुपतापूर्ण साम्राज्यवाद का अन्त कर दिया था, और हिन्दू जनता में नैतिक दृष्टि से जो दोष आ गये थे, उनका निवारण करने का पूरा-पूरा प्रयत्न किया और वे उसमें सफल भी हुए। उन्होंने अपने आचरणों को भौतिक स्वार्थ के द्वारा कलंकित नहीं किया। वे अपने आध्यात्मिक कल्याण और विजय के लिए अपने उद्देश्य को पूरा करने के पश्चात् शिव की भक्ति में लीन हो गये थे । वे शंकर भगवान के सच्चे भक्त थे, और उनकी उपासना को ही परम धर्म समझते थे। उन्होंने आर्यावर्त में हिन्दू साम्राज्य की फिर से स्थापना की। वे राष्ट्रीय उद्देश्य को ले कर चले थे, जिसमें उन्हें पर्याप्त सफलता मिली । नागों की शासन-प्रणाली एक आदर्श और सरलतम शासन-प्रणाली थी। यद्यपि उन्होंने धार्मिक उद्देश्यों की पूर्ति के साथ ही राजनैतिक उद्देश्यों को भी अपने सामने रखा, किन्तु जनता के सामान्य कल्याण के लिए उन्होंने अनेक प्रयत्न किये और हिन्दुत्व की प्राणप्रतिष्ठा में अपूर्व योगदान दिया। नागवंश के शासन को पूर्ण रूप से गणतंत्र एवं गणसंघ तो नहीं कहा जा सकता, जिसकी सूक्ष्मातिसूक्ष्म परिभाषा का आधुनिक काल में विकास हुआ है । आज की कसौटी पर त्यागी पौरजानपद एवं समसुख दुःख-धर्म महाराजाधिराजों का राजतंत्र खरा तो नहीं उतर सकता, किन्तु अपने आरम्भिक रूप में वह पर्याप्त विकसित था । राजाओं के कार्य प्रजा के हित और कल्याण को साथ ले कर चलते थे। राजा को किसी-न-किसी रूप में लोक प्रतिनिधि का अधिकार प्राप्त रहा होगा। प्रजा का सहयोग राजतंत्र का एक आवश्यक तत्व था । इस युग में एक राज्य की सीमा दूसरे राज्य से मिली रही होगी। किन्तु ऐसे विवाद नहीं उठ खड़े हुए होंगे, जैसे आज उठ रहे हैं । यह सीमाएँ दो राज्यों के स्नेह-सम्बन्धों For Private and Personal Use Only
SR No.020523
Book TitlePadmavati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sharma
PublisherMadhyapradesh Hingi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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