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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६ : पद्मावती ब्राह्मण विरोधी थे। कुषाणों की धार्मिक एवं सामाजिक नीति का वर्णन हम आगे कर रहे हैं । यहाँ इतना उल्लेख कर देना आवश्यक है कि ब्राह्मणों की वर्ण-व्यवस्था के झंझट के कारण ये म्लेच्छ अत्यन्त उपेक्षा और घृणा की दृष्टि से देखे जाते थे; जिससे इन्हें बड़ा बुरा लगता था। इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप इन्होंने ऐसे अनेक प्रयत्न किये जिससे कि भारत की सामाजिक व्यवस्था ही गड़बड़ा जाये । सुनते हैं, काश्मीर में तो इसके विरुद्ध एक बड़ा भारी आन्दोलन भी खड़ा हो गया था, वहाँ के राजा गोनर्द तृतीय ने उस नाग उपासना को फिर से प्रचलित किया था जिसे कुषाण शासन ने नष्ट कर डाला था। किन्तु कुषाणों के इस दमनकारी चक्र को समाप्त करके शासन और समाज के छिन्न-भिन्न रूप को फिर से संगठित करने तथा पद्मावती को एक सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में पुनर्स्थापित करने का एकमात्र श्रेय भारशिव राजाओं को ही दिया जा सकता है, जिन्होंने पद्मावती में शासन किया था तथा वाह्य शक्तियों के शोषण का उन्मूलन करके समाज को अभयदान प्रदान किया। वनस्पर के पश्चात् उत्तरी भारत में शकों का प्रभुत्व नष्ट-प्राय हो चला था। वैसे तो मालव के संगठित राष्ट्र-प्रेमियों ने भी शकों को निष्कासित करने का कार्य प्रारम्भ कर दिया था, जिसका एकमात्र कारण यही था कि इन्हें विदेशी समझा जाता था। इस सम्बन्ध में उन्होंने दक्षिण महाराष्ट्र के तत्कालीन सातवाहन शासकों से सहायता ली थी और प्रारम्भिक सफलता स्वरूप उज्जयिनी के शकों को परास्त कर दिया गया। शकों की यह पराजय उनकी शक्ति पर गहरे प्रहार के रूप में सिद्ध हुई और उनका तत्काल प्रभाव यह हुआ कि कुछ समय के लिए उत्तर भारत पर उनका राजनैतिक प्रभुत्व ही समाप्त हो गया ।२ ३.४ कुषाण शासन और पद्मावती जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है वनस्पर ने ब्राह्मणों का विनाश करने के अनेक प्रयत्न किये । इसके साथ ही उसने उच्च वर्गीय क्षत्रियों का भी उन्मूलन किया । यहाँ तक कि हिन्दुओं के अनेक स्मृति-चिह्नों को मिटाने में उसका प्रधान हाथ रहा। एक स्थान पर इस बात का उल्लेख मिलता है कि पवित्र अग्नि के जितने मन्दिर थे वे एक आरम्भिक कुषाण ने नष्ट कर डाले थे और उनके स्थान पर बौद्ध मन्दिर बनवाये गये थे। एक कुषाण १. पारजिटरकृत पुराण टैक्स्ट की पृष्ठ ५२ की पाद टिप्पणी ४८ उल्लेखनीय है । विष्णु पुराण में कहा है-कैवर्त यदु (यवु) पुलिंग अब्राह्माणानाम् (न्यान्) राज्ये स्थापयिस्यथि उत्साद्येखिल क्षत्र-जाति । भागवत में कहा है-करिष्यति अपरान् वर्णान् पुलिंद-यवु, मद्रकान् । प्रजाश्च अब्रह्म भुयिष्ठाः स्थापयिष्यति दुर्मतिः ॥ वायू पुराण में कहा है-उत्साद्य पार्थिवान सर्वान सो अन्यान वर्णान करिष्यति कैवर्तान पंचकांश्चैव पुलिंदान अब्रह्मणानांस्तथा ॥ दूसरा पाठ-कैवर्तयासाम सकांश्चैव पुलिंदान् । और कैवर्तान् य पुमांश्चैव आदि । अ० यु० भा० पृष्ठ ७८ । २. मथुरा, श्री कृष्णदत्त वाजपेयी, पृष्ठ १८ । For Private and Personal Use Only
SR No.020523
Book TitlePadmavati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sharma
PublisherMadhyapradesh Hingi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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