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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ : पावती २.५ खजुराहो का शिलालेख पद्मावती के सम्बन्ध में खजुराहो में प्राप्त शिलालेख विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। यह लेख ई० सन् १००० के आस-पास का है । शिलालेख का पाठ इस प्रकार है-'पृथ्वी तल पर एक अनुपम (नगर) था जो ऊँचे-ऊँचे भवनों से शोभित था और जिसके सम्बन्ध में यह लिखा मिलता है कि उसकी स्थापना पृथ्वी के किसी ऐसे शासक और नरेन्द्र के द्वारा स्वर्ण और रजत युगों के बीच में हुई थी जो पद्म वंश का था। ( इस नगर का ) इतिहासों में उल्लेख है ( और ) पुराणों के ज्ञात लोग इसे पद्मावती कहते हैं। पद्मावती नाम की इस परम सुंदर ( नगरी ) की रचना एक अभूतपूर्व रूप से हुई थी। इसमें बहुत बड़े-बड़े और ऊँचे-ऊँचे भवनों की पंक्तियाँ थीं, इसके राजमार्गों में बड़े-बड़े घोड़े दौड़ते थे। इसकी दीवारें कांतियुक्त, स्वच्छ, शुभ्र और गगनचुम्बी थीं। वे आकाश से बातें करती थीं और इसमें ऐसे स्वच्छ भवन थे जो तुषारमंडित पर्वत की चोटियों के समान जान पड़ते थे।"१ इस शिलालेख में पद्मावती के एक अनुपम नगर होने का उल्लेख किया गया है, जिसका आधार तत्कालीन स्थापत्यकला की उन्नति को माना गया है। इस नगर के इतिहासों में उल्लेख होने की बात भी उठाई गई है किन्तु आज यह ऐतिहासिक विवरण उपलब्ध नहीं । हाँ, पुराणों में इसका उल्लेख मिलता है, इस सम्बन्ध में ऊपर संकेत किया जा चुका है। इस नगर में ऊँचे भवन तो थे ही, किन्तु उससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात थी इस नगर की आवास व्यवस्था । ऊँचे-ऊँचे भवनों की पंक्तियाँ और लम्बे-चौड़े राजमार्ग इस नगर की प्रमुख विशेषता थी। लम्बे-चौड़े राजमार्ग वाली बात संभवतः इस तथ्य पर भी प्रकाश डालती है कि यह नगर यातायात के एक मुख्य मार्ग पर स्थित था। स्वास्थ्य विज्ञान की दृष्टि से सुन्दर और स्वच्छ भवन तथा ऊँची-ऊँची दीवारें कितनी महत्वपूर्ण होती हैं, यह बात चाहे आज सर्वविदित न हो, किन्तु पद्मावती के शासकों के लिये यह ज्ञान व्यावहारिक रूप ले चुका था। इतना ही नहीं ये बातें तत्कालीन शासकों एवं कलाकारों के जीवन और समाज के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण की परिचायक हैं। १. आसीद प्रतिमा विमान भवनैराभूषिता भूतले लोकानामधियेन भूमिपतिना पद्मोत्थ वंशेन या। केनापीह निवेशिता कृतयुगत्रेतांतरे श्रूयते सच्छास्त्रे पठिता पुराण पटुभिः पद्मावती प्रोच्यते । खजुराहो के शिलालेख-इ० १ प्रथम खण्ड-पृष्ठ १४६ For Private and Personal Use Only
SR No.020523
Book TitlePadmavati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sharma
PublisherMadhyapradesh Hingi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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