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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १० : पद्मावती प्रपात में उत्पन्न यह तुमुल ध्वनि तटसीमा में अवस्थित पर्वतों के निकुंजों में बढ़ने से गणेश जी के कण्ठ गर्जन के सादृश्य को प्राप्त होती है। चंदन, सर्ज, सरल पाटल आदि से युक्त वृक्षों से दुर्गम और पके हुये बेल के फलों से सुगंधित ये वन और पर्वत के प्रदेश नवीन कदम्ब वन और जम्बू वनों से दृढ़ किये गये अंधकार से घने पर्वत लता गृहों में शब्द करने वाली गम्भीर गदगद ध्वनि निकालने से कठोर शब्द वाली गोदावरी नदी से शब्दयुक्त किये गये विशाल पर्वत के नितंब प्रदेश वाले दक्षिण के वन और पर्वतों का स्मरण करा रहे हैं। और ये मधुमती और सिंधु नामक नदियों के संगम को पवित्र करने वाले स्वतः सिद्ध स्थिति वाले भगवान महादेव 'सुवर्णविन्दु' कहे जाते हैं। (प्रणाम कर)। लोकों की उत्पत्ति करने वाले हे देव, आपकी जय हो। सब को वर देने वाले, वेदों के निधान हे भगवन्, आपकी जय हो । सुंदर चंद्र को शिरो भूषण बनाने वाले हे देव, आपकी जय हो। कामदेव का संहार करने वाले हे देव, आपकी जय हो। हे आदि गुरो, आपकी जय हो । भौगोलिक विश्लेषण सौदामिनी के उक्त कथन से पद्मावती की भौगोलिक स्थिति के सम्बन्ध में निम्नलिखित संकेत प्राप्त होते हैं : १-पद्मावती दो नदियों से आवेष्टित थी, एक सिन्धु और दूसरी पारा। निर्मल जल वाली इन दोनों नदियों के वर्तमान नाम सिंध और पार्वती हैं। २- इन दोनों नदियों से परिवेष्टित होने के अतिरिक्त पद्मावती उनके संगम पर स्थित थी। इन नदियों द्वारा निर्मित द्विशाखा पद्मावती का ही क्षेत्र था। ३-सिन्धु नदी में नगर के निकट ही एक जल प्रपात भी था । विल्सन ने तटप्रपात का अर्थ किया है तटों का गिरना। किन्तु वह इस प्रसंग में समीचीन प्रतीत नहीं होता । यहाँ उसका अर्थ जलप्रपात ही होगा। १. अन्यतोविलोक्य स एव भगवत्याः सिन्धोर्दारित रसातलस्तट प्रपातः यत्रव्य एषतुमुलध्वनिरम्बुगर्भ गंभीर नूतन घनस्तनितप्रचण्ड: पर्यन्तभूधरनिकुंज विजम्भणेन हेरम्बकंठरसित प्रतिमानमेति ॥ २. एताश्चन्दनाश्वकर्ण सरल पाटला प्रायतरुगहनाः परिणतमालूर सुरभयोअरण्य गिरि भूमयः स्मारयन्ति तरुण कदम्बजम्बू वनावबद्धान्धकार गुरुगिरिनिकुंज गुंजद्गंभीर गद्गदोन्दार घोरघोषणगोदावरी मुखरित विशाल मेखला भुमो दक्षिणारण्य भूधरान् । अयंच मधुमती सिंधुसंभेद पावनो भगवान्भवानीपतिरपौरुषेयप्रतिष्ठः सूवणविन्दुरित्या ख्यायत ।। प्रणम्यामः ) जय देव भुवन भावन जय भगवन्नखिलवरद निगमनिधे । जय रुचिर चन्द्रशेखर जय मदनांतक जयादि गुरो। मालती माधवम्-नवमोअंक। For Private and Personal Use Only
SR No.020523
Book TitlePadmavati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Sharma
PublisherMadhyapradesh Hingi Granth Academy
Publication Year1971
Total Pages147
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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