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पप्र की कु नी पाक में यकावे हे कभी नीवा माथा ऊंचा पंग कर लटकावें हैं मुदगरों से मारिये हैं कहाड़ों।
से काटिय हं करातनसे विदारिये हैं पानी में पेलिये हैं नानाप्रकारके छेदन भेदन हैं यह नारकी जीव महा दान महा तृषा कर तृषित पाने को पानी मांग हैं तब तांबादिक गाल प्यावे हैं वे कहे हैं हमको यहाँ तृपा नहाँ हमारा पाया छोड़ दो तब बलात्कार तिनको पछाड़ सण्डासियोंसे मुख फाड मार २ प्यावे हैं कण्ठ हृदय विदीर्णहोय जाय हैं उदर फट जाय है तीजे नस्कतक तो परस्परभी दुःख है और अमुर कुमारों की प्रेरणासे भी दुःख है और चौथे से लेयसातवें तक असुरकुमारोंका गमन नहीं परस्परही पीडाउपजावे हैं नरक मे नीचले से नीचले बढ़ता दुःख है सातवांनरक सबोंमें महादुःख रूप है नारकीयों को पहिलाभव याद
आवे है और दूसरे नारकी तथा तीजे लगअसुर कुमार पूर्वले कर्म याद करावें हैं तुम भले गुरुवों के बचन उलंघ कुगुरु कुशास्त्र के बलकर मांस को निर्दोष कहते थे नानाप्रकार के मांसकर और मधु कर मदिरा कर कूदेवोंका अाराधन करते थे सो मांसके दोषसे नरक में पडे हो ऐसा कहकर इनही काशरीर काट २ इन के मुख में देय हैं और लोहे के तथा तांबे के गोला बलते पछाड २ मंडासियों से मुख फाड़ २ छाती पर पांव देय २ तिनके मुख में घाले हैं और मुद्गरों से मारे हैं और मद्य पानीयों को मार २ । तातातावां शीशा प्यावे हैं और परदारारत पापियोंको बज्राग्निकर तप्तायमान लोहे की जे पूतली तिन से लिपटायें हैं और जे परदारारत फूलोंके सेज सूते हैं तिनको मूलों की सेजऊपर मुवावे हैं और स्वप्न की माया समान असार जो राज्य उसे पायकर जे गर्वे हैं अनीति करें हैं तिनको लोहके कीलोंपर बैठाय मुद्गरों से मारें हैं सो महाविलाप करे हैं इत्यादि पापी जीवों को नरकके दुःख होय हैं सो कहांलग कहें।
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