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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथानन्तर सूर्य उदय भया कमल प्रफुल्लितभये जैस राजाके किंकर पृथिवी में बिचरेंतैसे मूर्यकी पुराण | किरण पृथिवी ने बिस्तरी जैसे दिब्य कर अपबाद नस जाय तैसे सूर्य के प्रताप कर अंधकार दूर भया तब सीता उत्तम नारियों कर युक्त राम के समीप चली हथनी पर चढ़ी मन की उदासीनता । कर हती गई है प्रभा जिसकी तौभी भद्र परिणामकी धरणहारी अत्यन्त सोहतीभई जैसेचन्द्रमाकीकला ताराओंकर मंडित सोहे तैसे सीता सखियोंकर मंडित सोह सब सभा विनय संयुक्त सीताको देख वंदना करते भये यह पापरहित धीरताकी करणहारी रामकी रमा सभा में पाई राम समुद्र समान क्षोभ को प्राप्त भये लोक सीताके जायकर विषाद के भरे थे और कुमारों का प्रताप देख पाश्चर्य के भरे भये अब सीता के प्रायवे कर हर्ष के भरे ऐसे शब्द करते भए हे माता सदा जयवन्त होवो नादो वरधो फूलो फलो धन्य यह रूप धन्य यह धीर्य धन्य यह सत्य धन्य यह ज्योति धन्य यह महानुभावता धन्य यह गंभीरता धन्य निर्मलता ऐसे वचन समस्तही नर नारियों के मुख से निकसे आकाश में विद्याधर भमिगोचरी महा कौतुक भरे पलक रहित सीता का दर्शन करते भए । और परस्पर कहतेभए पृथ्वी के पुण्यके उदय से जनकसुतो पीछे आई, कैएक तो वहां श्रीरामकी ओर निरखे हैं जैसे इन्द्रकी ओर देव निरखें कैएक रामके समीप बैठे लव और अंकुश तिनको देख परस्पर कहे हैं ये कुमार राम के सदृशहीहैं और कई एक लक्षमणकी अोर देखे हैं कैसाहै लक्षमण शत्रुवों के पक्षके क्षय करिबे को समर्थ और कई शत्रुघ्नकीबोर का एक भामण्डलकी अोर कईएक हनूमानकी ओर कईएक विभीषणकी ओर कईएक विरा|| धितकी ओर और कईएक सुग्रीव की ओर निरखेहैं और कई एक आश्चर्यको प्राप्तभए सीताकीओर देखेहैं | For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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