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पद्म पुराण
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महा रमणीक नगर हैं जहां स्वर्ण रत्नोंके महल हैं सो उनके नाम सुनो संध्याकार सुवेल कांचन हरि पुर जोधन जलविध्वान हंसदीप भरक्षम अर्धस्वर्ग कूटावर्त विघट रोधन अमल कांत स्फुटतट रत्नद्वीप तोयावली सर अलंघन नभोभा क्षेम इत्यादि मनोज्ञ स्थानक हैं जहां देवभी उपद्रव न कर सकें यहांसे उत्तर भाग तीनसौ योजन समुद्र के मध्य वानरद्वीप है जो पृथिवी में प्रसिद्ध है जहां अवांतरदीप बहुत रमणीक हैं कैएको सूर्य कांति मणियोंकी ज्योतिसे देदीप्यमान हैं और कैएक हरित मणियोंकी कांतिसे ऐसे शोभे हैं मानो उगते हरे तृणों से भूमिव्याप्त हो रही है और कईएक श्याम इन्द्र नीलमणिकी कांति के समूह से ऐसे शोभे हैं मानो सूर्य के भयसे अन्धकार वहां शरण आकर रहाहै और कहीं लाल पद्म राग मणियों के समूह से मानो रक्त कमलोंका बनही शोभे है जहां ऐसी सुगन्ध पवन चले है कि याकाश में उड़ते पक्षी भी सुगन्ध से मग्न होय जाय हैं और वहां वृक्षोंपर आय बैठे हैं और स्फुटिक मणि के मध्य में जो पद्मराग मणि मिला है उन से सरोवरमें पङ्गही कमल जाने जायहैं उन मणियोंकी ज्योति से कमल के रङ्ग न जाने जाय हैं जहां फूलोंकी बाससे पक्षी उन्मत्त भए ऐसे उन्मत्त शब्दकरें हैं मानो समीप के द्वीप से अनुराग भरी बात करे हैं जहां औषधियोंकी प्रभा के समूहसे अन्धकार दूर होय है इस लिये अंधेर पक्षमें भी उद्योतही रहे है जहां फल पुष्पों से मण्डित वृक्षों का आकार छत्रसमान है जिनके बड़े २ डाले हैं उनपर पक्षी मिष्ट शब्द कर रहे हैं जहां विना बाहे घान आपसेही उगे हैं वह धान वीर्य और कांति को विस्तीरणे वाले हैं मंद पवन से हिलते हुवे शोभे हैं उनसे पृथिवी मानों कंचुक (चोला) पहरे है जहां नीलकमल फूल रहे हैं जिनपर भ्रमरोंके समूह गुंजार करे हैं मानो सरोवरही नेत्रोंसे पृथिवी
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