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पद्म
पुरा ६०४.
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भेट करते भये इस भांति सीता सती पेंड २ पर राजा प्रजावों कर पूजी संती चली जाय है वज्रजंघ का देश अति सुखी ठौर २ बन उपबनादि कर शोभित ठौर २ चैत्यालय देख अति हर्षित भई मन में बिचारे है जहां राजा धर्मात्मा होय वहां प्रजा सुखी होय ही अनुक्रम कर पुण्डरीक पुर के समीप
सो राजा की आज्ञा से सीता का श्रागमन सुन नगरके सब लोक सन्मुख आए और भेदकरते भए नगर की अति शोभा करी सुगंध कर पृथिवी छांटी गली बाजार सब सिंगारे और इन्द्रधनुष समान तोरण चढ़ाए और द्वारों में पूर्ण कलश थापे जिनके मुख सुन्दरपल्लव युक्त हैं और मंदिरों पर ध्वजा चढ़ी और घर घर मंगल गावे हैं मानों वह नगर आनन्द कर नृत्यही करे है नगरके दरवाजे पर तथा कोटके कांगरे पर लोक खड़े देखे हैं हर्ष की वृद्धि होय रही है नगर के बाहिर और भीरत राजद्वार तक सीता के दर्शनको लोक खड़े हैं चलायमान जे लोकों के समूह तिनकर नगर यद्यपि स्थावर है तथापि जानिए जंगम होयरहा है । नानाप्रकार के बादित्र बाजें हैं तिनके नादकर दशों दिशा शब्दायमान हो रही है शंखबाजे हैं बन्दोजन बिरद बनाने हैं समस्त नगर के लोक आश्चर्यको प्राप्त भये देखे हैं और सीता ने नगर में प्रवेश किया जैसे लक्ष्मी देव लोकमें प्रवेश करे वज्रजंधके मंदिर में अति सुन्दर जिनमंदिर है सर्व राज लोक की स्त्री जन सीता के सन्मुख श्राई सीता पालकी से उत्तर जिनमंदिर में गई कैसा है जिनमंदिर मभा सुन्दर उपबन कर बेष्ठित है और वापिका सरोवरी तिन कर शोभित है सुमेरुके शिखर समान सुन्दर स्वर्ण मई है जैसे भाई भामंडल सीताका सन्मान करे तैसे बज्रजंध आदर करता भया बज्रजंघ के समस्त परिवार के लोक और राज लोक की
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