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पद्म | और हे देवि कुशाग्रनगर में श्रीमुनिसुव्रतनाथ का दर्शन करेंगे जिनका धर्मचक्र प्रवर्ते है और और । पुराण
भी जे भगवान् के अतिशय स्थानक महापवित्र हैं पृथिवी में प्रसिद्ध हैं वहां पूजा करेंगे, भगवान के चैत्य और चैत्यालय सुरअसुर और गन्धर्वो कर स्तुति करवे योग्य हैं नमस्कार योग्य हैं तिन सबों की बन्दना हम करेंगे, और पुष्पक विमान में चढ़ सुमेरु के शिखर पर जे चैत्यालय, तिनकादर्शन करभद्रशाल बन नन्दन बन सौमनस बन वहां जिनेन्द्र की अर्चा कर और कृत्रिम अकुत्रिम अढाई द्वीप में जैते चैत्यालय हैं तिन की वन्दना कर हम अयोध्या अावेंगे, हे प्रिये भावसहित एकबार भी नमस्कार श्री अरहंतदेव को करें तो अनेक पापों से छूटे है, हे कांते धन्य तेग भाग्य जो गर्भ के प्रार्दुभाव में तेरे जिन बन्दना की वांछा उपजी मेरे भी मनमें यही है तो सहित महापवित्र जिनमन्दिरों का दर्शन करूं हे प्रिये पहिले
भोगभमि में धर्म की प्रवृत्ति न थी लोक असमझ थे सो भगवान ऋषभ देवने भव्यों को मोक्ष मार्ग | का उपदेश दिया जिन को संसार भ्रमण का भय होय तिनको भव्य कहिये, कैसे हैं भगवान ऋषभ || प्रजा के पति जगत् में श्रेष्ठ त्रैलोक्य कर बन्दवे योग्य नानाप्रकार अतिशय कर संयुक्त सुरनर असुरों
को आश्चर्य कारी वे भगवान भव्यों को जीवादिक तत्वों का उपदेश देय अनेकों को तारनिर्वाण पधारे सम्यक्तादि अष्ट गुण मण्डित सिद्ध भए जिनका चैत्यालय सर्व रत्नमई भरत चक्रवर्ती ने कैलाश पर कराया और पानमे धपुष की रत्नमई प्रतिमा सूर्य से भी अधिक तेज को धरे मन्दिर में पधराई सो विराजे है जिसकी प्रमभो देव विद्याधर गंधर्व किन्नर नाग दैत्य पूजा करे हैं जहां अप्सरा नृत्य करे हैं जो प्रभु । स्वयंश सर्वगति निर्मल त्रैलोक्य पूज्य जिसका अन्त नहीं अनंतरूप अनन्त ज्ञान विराजमान परमात्मा सिद्ध
RANGI
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