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पुराण
कर्म कलंक राहत परमधाम को प्रातभये और केकई शोकरूप अग्नि से आताप का प्राप्त भई फिर 1८६८, वीतराग का मार्ग सार जानकर आर्यिका होय महा तप से स्रीलिंग छेद स्वर्ग में देवभई मनुष्य होय
मोक्ष पावेगी रामलक्ष्मण अयोध्यामें इन्द्र समान राज्य करें सो लोक दुष्टचित्त निश्शंक होय अपवाद करतेभये किरावण हरकर सीता को लेगया फिर राम ल्याय घरमें राखी सो राम महा विवेकी धर्म शास्त्र के वेत्ता न्यायवन्त असी रीति क्यों आचरें जिस रीति आचरें उसी रीति प्रजा प्रवरते सो लोक मर्यादा रहित होने लगे, कहें रामही के घर यह रीति तो हम को क्या दोष और मैं गर्भ सहित दुर्बल शरीर यह चितवन करती थी कि जिनेन्द्र के चैत्यालयों की अर्चना करूंगी और भरतार भी मुझ सहित जिनेद्र के निर्वाण स्थानक और अतिशय स्थानक तिन की बन्दना करने को भाव सहित उद्यमी भय थे और मुझे असे कहते थे कि प्रथम तो हम कैलाश जाय श्री ऋषभदेव का निर्वाण क्षेत्र बन्देगे फिर और निर्वाण क्षेत्रों को बन्द कर अयोध्या में ऋषभ आदि तीर्थकर देवों का जन्म कल्याणक है सो अयोध्या की यात्रा करेंगे जेते भगवान के चैत्यालय हैं तिन का दर्शन करेंगे कंपिल्या नगरी में विमलनाथ का दर्शन करेंगे और रत्नपुर में धर्मनाथ का दर्शन करेंगे कैसे हैं धर्मनाथ धर्म का स्वरूप जीवोंको यथार्थ उपदेशहैं फिर श्रावस्ती नगरीमें संभव नाथको दर्शन करेंगे औरचम्पापुरमें वासुपुज्ज का योर का कंदापर में पुष्पदन्तका चन्द्रपुरी में चन्द्र प्रभका कौशांबीपुरी में पद्मप्रभको भद्रकपुर में शीतलनाथ का और मिथिलापुरी में मल्लिनाथ स्वामी का दर्शन करेंगे और वाणारसी में सुपार्श्वनाथ स्वामी का दर्शन करेंगे और सिंहपुर में श्रेयांसनाथ का और हस्तनागपुर में शांति कुन्थु अरहनाथ का पूजन करेंगे
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