________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पुराख
ucON
पन
ता है और सर्व त्याग कर महा व्रत घर पाठ कर्म भस्मकर सिद्ध होय है और जे पापी जीव खोटे फर्म में आसक्त हैं ते इसी ही भव में लोक निन्द होय मरकर कुयोनिमें जाय हैं और अनेक प्रकार दुख भोगवे हैं ऐसा जान पाप रूप अन्धकारके हरणेको सूर्य समान जो शुद्धोपयोग उसको भजो।
मौतम स्वामी कहे हैं हे श्रेणिक रातस वंश और विधाघरों के वंशका वृत्तान्त तो तुझसे कहा अब बानर बंशियोका कथन सुन स्वर्ग समान जो विजियागिरि उसकी दक्षिण श्रेणीमें मेघपुर मामा नगर ऊंचे महलों से शोभित है, वहां विद्याधरों का राजा अतींद्र पृथ्वी पर प्रसिद्ध भोग सम्पदा मे इन्द्र तुल्य उस के श्रीमती मामा रार्णा लक्ष्मी समान हुई जिसके मुख की चांदनी से सदा पूर्णमासी समान प्रकाश होय, तिन के श्री कण्ठ नामा पुत्र हुआ जो शास्त्र में प्रवीण जिस के नेत्र नाम को सुनकर विचक्षण पुरुष हर्षको प्राप्त होय उस के छोटी बहिन महा मनोहर देवी नामा हुई जिसके नेत्र काम के बाण ही हैं।
रत्नपुर नामा नगर अति सुन्दर वहां पुष्पोत्तर नाम राजा विद्याधर महा बलवान उस के पद्मा भा नाम पुत्री देवांगना समान और पद्मोत्तर नामा पुत्र महा गुणवान जिसके देखने से अति श्रा नन्द होय सो राजा पुष्पोत्तर अपने पुत्र के निमित्त राजा अतींद्र की पुत्री देवी की बहुत बार याचना करी परन्तु श्रीकंठ भाई ने अपनी बहिन लंका के धनी कीर्तिधवल को दीनी और पद्मोत्तरको
न दीनी यह बात सुन राजा पुष्पोतर ने अति कोप किया और कहा कि देखो हममें कुछ दोष नहीं | दारिद्र दोष नहीं मेरा पुत्र कुरूप नहीं और हमारे उनके कुछ वैरभी नहीं तथापि मेरे पुत्रको श्रीकंठ
For Private and Personal Use Only