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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पा ८३२ | से उतर भोजन शाला में गए साधुत्रों को भोजन देय मित्र बांधवादि सहित भोजन किया, और भावजों पुराण को भोजन कराया फिर लोक अपने अपने स्थान को गए समस्त लोक आश्चर्य को प्राप्त भए, हाथी रूठा फिर भरत के समीप खड़ा होय रहा सो सबों को आश्चर्य उपजा गौतम गणधर राजा श्रेणिकसे कहे हैं कि हे राजन हाथीके समस्त महावत रामलक्ष्मण पै आए प्रणामकर कहते भए कि हे देव याज गजराज को चौथा दिन है कछू खायन पीवे न निद्रा करे सर्व चेष्टा तज निश्चल ऊभा है जिस दिन को किया था और शांत भया उसही दिन से ध्याना रूढ निश्चल बरते है हम नाना प्रकार के स्तोत्र कर स्तुति करे हैं अनेक प्रिय बचन कहे हैं तथापि श्राहार पानी न लेय है हमारे बचन कान न धरे अपनी मूण्ड को दांतों में लिये मुद्रित लोचन ऊभा है मानों चित्राम का राज है जिसे देखे लोकों को ऐसा भ्रमहोय है कि यह कृत्रिम गज है अथवा सांचा गजहै हम प्रियवचन कहकर आ हार दिया चाहे हैं सोन लेय नानाप्रकार के गजके योग्य सुन्दर आहार उसे न रुत्रे चिन्तावान सा ऊभा है. निश्वास डारे है समस्त शत्रुदों के वेत्ता महा पंडित प्रसिद्ध गज वैद्यों के भी हाथ हाथी का रोग न आया गंधर्व नानाप्रकार के गीत गायें हैं सो न सुने और नृत्यकारिणी नृत्य करे हैं सो न देखे पहिले नृत्य देखेथा गीत सुनेथा अनेक चेष्टा करेथा सो सब तजी नाना प्रकार के कौतुक होय हैं सो दृष्टि नवरे मंत्र विद्या औषधादिक अनेकउपाय किए सो न लगे माहारविहार निद्रा जल पानादिक सबतजे हम तिमित करे हैं सो न माने जैसे रूठे मित्रको अनेक प्रकार मनाइय सो नमाने न जानिए इस हाथी के सिमें क्या है काहू बस्तुसे काहू प्रकार रझेि नहीं काद्दू वस्तुपर लुभावे नहीं खिजाया संता For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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