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परामा
पद्म अब सर्वथा प्रकार उद्यमी होय भव दुखसे छूटिवे का उपाय करूं चितारे हैं पूर्व भवजिसने गजेन्द्र अत्यंत ३१. विरक्त पाप चेष्टा से पराङ्मुख होय पुण्यके उपार्जन में एकाग्र चित्त भया । यह कथा गौतमस्वामी राजा
श्रेणिक से कहेहैं हे राजन पूर्वे जीवनेअशुभ कर्म कीए वे संतापकोउपजावें इसलिये हे प्राणी हो अशुभ कर्मको तज दुर्गति के गमन से छूटो जैसे सूर्य होते नेत्रवान मार्ग विषे न अटके तैसे जिन धर्म के होते विवेकी कुमार्ग में नपड़ें प्रथम अधर्मको तज धर्म को अादरें फिर शुभा शुभ से निवृत्त होय अात्म | धर्म से निर्वाण को प्राप्त होवें ॥ इति त्रियासीवां पर्व शम्पूर्णम् ॥
___अथानन्तर वह गजराज महा विनयवान धर्म ध्यान का चितवन करता रामलक्षमण ने देखा और धीरे धीरे इसके समीप आए कारी घटा समान है अाकार जिसका सो मिष्ट अचमाबोल पकड़ा और निकटक्तों लोकों को आज्ञा करगजको सर्वश्राभूषण पहिराये हाथी शांतचित्त भया तवनगरके लोगों की अाकुलता भिटो हाथो असा प्रकल जिसकी प्रचंड गति विद्याधरों के अधिपति से न रुके, समस्त नगर में लोक हाथी की वार्ता करें यह त्रैलोक्य मंडन रावण को पाट हस्ती है इसके बल समान और नांही रामलक्षमण ने पकदा विकार चेष्टा को प्राप्त भया था अब शांतचित भया सो लोकों के महा पुण्य का उदय है, और घने जीवोंकी दीर्घ आयु भरत और सीता विशल्या हाथी पर चढ़े बड़ी विभूति से नगरमें आये और श्राद्धृत बस्त्राभरणसे शोभित समस्त राणी नाना प्रकार के बाहनों पर चढ़ी भरत को ले नगरमें पाई,और शत्रुधन माई'अश्व पर श्रारुढ़ महा विभूति सहित महा तेजस्वी भरतके हाथी के अwो नाना प्रकार ।। के वादियों के शब्द होते नंदन बन समान बनस नगर में आए, जैसे देव सुरपुर में श्रा, भरत हाथी
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