________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पुरुष अर्घ्यपाद्य करते भए सोई तरंग भई पैड पैड विषे जगतकर पूज्यमान दोनों वीर महाधीर तिनको समस्त जन आशीर्वाद देते भए हे देव जयवन्त होवो वृद्धिको प्राप्त होवो चिरंजीव होवो नादोविरदो इसभांति असीस देतेभए और अति ऊंचे विमानसमान मंदिर तिनके शिखर विषे तिष्ठती सुंदरी फूल गएहैं नेत्रकमलं जिनके वे मोतियोंके अक्षत डारती भई, सम्पूर्ण पूर्णमासीके चन्द्रमा समान गम कमल नेत्र और वर्षाकी घटा समान लक्ष्मण शुभ लक्षण तिनके देखवेको नर नारी श्रावते भए और समस्त कार्य तजे झरोखों में बैठी नारी जन निरखे हैं सो मानों कमलोंके वन फूल रहे हैं और स्त्रियों के परस्पर संघट्टकर मोतियोंके हार टूटे सो मानों मोतियोंकी वर्षा होयहै स्त्रियों के मुख से ऐसी ध्वनि निकसीये श्रीराम जिनके समीप राजा जनककी पुत्री सीता बैठी इसकी माता राणी विदेहाहै और श्री रामने साहसगति विद्याधर मारा वह सुग्रीवका आकारधर आयाथा विद्याधरों में दैत्य कहावे और यह लक्षमण रामका लघुबीर इंद्र तुल्य पराक्रम जिसने लंकेश्वरको चक्रकर हता,और यह सुग्रीव जिसने राम से मित्रता करी और यह भामंडल सीता भाई जिसको जन्म से ही देव हर लेगया फिर दया कर छोड़ा सो राजा चन्द्रगति के पला श्राकाश से बन विषे गिरा राजाने लेकर राणी पुष्पावती को सौंपा देवोंने काननमें कुंडल पहराकर आकाश से डाला सो कुंडलकी ज्योतिकर चन्द्रसमान भासा इस लिये भामण्डल नाम धरा और यह राजा चन्द्रोदय का पुत्र विराधित और यह पवनका पुत्र हनूमान कपिध्वज इस भांति आश्चर्य कर युक्त नगरकी नारी वार्ता करती भई॥
अथानन्तर राम लक्षमण राजमहिल में पधारे सो मन्दिर के शिखर तिष्ठती दोनों माता
For Private and Personal Use Only