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पुराण
नाथ अवलोकन कर कहते भये हे प्रिये यह अयोध्यापुरी विद्याधर सिलावटोंने बनाई है लंकापुरीकी ज्योति २०० को जीतन हारी फिर आगे आए तब रामका विमान सूर्यके विमान समान देख भरत महा हस्ती पर चढ़ अति आनन्द के भरे इन्द्र समान परम विभूति कर युक्त सन्मुख याए सर्वदिशा विमानोंकर आवादित देखी भरतको आवता देख राम लक्षमणने पुष्पक विमान भूमि में उतारा भरत गजसे उपर निका स्नेहका भरा दोनों भाइयों को प्रणाम कर अर्धपाद्य करता भया और ये दोनों भाई विमान से उतर भरत से मिले उरसे लगाय लीया परस्पर कुशल बार्तापूछी फिर भरतको पुष्पक विमानमें चढ़ाय लीया । और अयोध्या में प्रवेश किया अयोध्या रामके आगमन कर अति सिंगारी है और नाना प्रकारकी ध्वजा फर हरे हैं नाना प्रकार विमान और नानाप्रकारके रथ अनेक हाथी अनेक घोडेतिनकर मार्ग में अवकाश नहीं अनेक प्रकार वादित्रों के समूह वाजते भये शंख झांझ भेरी ढोल घूकल इत्यादि बादित्रोंका कहां लग वर्णन करिये महा मधुर शब्द होते भये ऐसेही वादित्रों के शब्द ऐसीही तुरंगों की हींस ऐसीही गजों की गर्जना सामन्तोंके अदृहास मायामई सिंह व्याघ्रादिकके शब्द ऐसेही वीण बांसुरीवोंके शब्द तिनकर दश दिशा व्याप्तभई बन्दीजन बिरद बखाने हैं नृत्यकारिणी नृत्य करें हैं भांड नकल करें हैं नट कला करें हैं सूर्य के रथ समान रथ तिनके चित्राकार विद्याधर मनुष्य पशुवोंके नाना शब्द सो कहां लग वन करिए विद्याघरोंके अधिपतियोंने परमशोभा करी दोनों भाई महा मनोहर अयोध्या विषे प्रवेश करते भए अयोध्या नगरी स्वर्गपुरी समान रामलक्षमण इंद्र प्रतीन्द्रसमान समस्त विद्याधर देव समान तिनका कहां लग वर्णन करिए श्रीरामचन्द्रको देख प्रजारूप समुद्र विषे श्रानन्दकी ध्वनि वढती भई भले
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