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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पद्म पुरा १८०५॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिनके उन दोनों भाइयोंके बहुत दिन भोगोपभोग युक्त सुख से एक दिवस समान गए, एक दिन लक्ष्मण सुन्दर लक्षणों का धरणहारा विराधित को अपनी जे स्त्री तिनके लेयवे अर्थ पत्र लिख बड़ी ऋद्धिसे पठावता भया सोजायकर कन्यावोंके पितावों को पत्र देताभया माता पितावोंने बहुत हर्षित होय कन्यायों को पठाई सो बडी विभूति सो आई देशांग नगर के स्वामी बज्रकर्णकी पुत्री रूपवती महा रूपकी धरणहारी और कूवर स्थानक नाथ बालखिल्यकी पुत्री कल्याणमाला परम सुन्दरी और पृथ्वी नगरके राजा पृथ्वीवर की पुत्री बनमाला गुणरूपकर प्रसिद्ध और खेमाजल के राजा जितशत्रु की पुत्री जितपद्मा और उज्जैन नगरी के राजा सिंहोदरकी पुत्री यह सब लक्ष्मणके समीप आई विराधितले लाया जन्मांतर के पूर्ण पुण्य दया दान मन इंद्रियों को बशकरना शील संयम गुरुभक्ति महा उत्तम तप इनशुभ कर्मों कर लक्ष्मण सा पतिपाइये इन पतिव्रतावोंने पूर्व महातप किये थे रात्रि भोजन तथा चतुर्विधि संघकी सेवा करी इसलिए बासुदेव पतिप ये उनको लक्ष्मणही बर योग्य और लमण के ऐसेही स्त्री योग्य तिनकर लक्ष्मणको और लक्ष्मणकर तिनको प्रति सुख होताभया परस्पर सुखीभये गौतम स्वामी राजा श्रेणिकसे कहे हैं हे श्रेणिक जगतविषे ऐसी संपदानहीं ऐसी शाभा नहीं ऐसा भोग नहीं ऐसी लीला नहीं ऐसी कला नहीं जो इनके न भई रामलक्षमण और इनकी राणी तिनकी कथा कहां लग कहें और कहां कमल कहांचन्द्र इन के मुखकी उपमा पावे और कहां लक्ष्मी और कहांरति इनकी राशियों की उपमा पावें रामलचमण की ऐसी संपदा दखविद्याधरों के समूहको परम आश्चर्य होताभया चन्द्रवर्धन की पुत्री और अनेक राजावकी कन्या तिनसे श्रीराम लक्षमणका अति उत्सव से विवाह होता भया सर्व लोकको For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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