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पन पुराण ॥८०२०
| हैं नट भाट अनेक कला अनेक चेष्टा करे, अति सुन्दर नृत्य होय है बन्दीजन विरद बखाने हैं ऊंचे स्वर
से स्तुति करे हैं, और शरदकी पूर्णमासी के चन्द्रमा समान उज्ज्वल छत्रों के मंडल कर अंबर छाय रहा है नाना प्रकार के आयुधों की कांति कर सूर्य की किरण दब गई है, नगर के सकल नर नारी रूप कमलनी के बन को आनन्द उपजावते भानु समानश्री राम विभीषणके घर गए। गौतमस्वामी कहे हे हे श्रेणिक उस समय की बिभूति कही न जाय महाशभ लक्षण जैसी देवों के शोभा होय तसी भई विभीषण ने अर्थ पाद्य किये अति शोभा करी श्री शांतिनाथ के मंदिर से लय अपने महिलतक महा मनोग्यपांडवकिये श्राप श्रीराम हाथीसे उतर सीता और लक्षमण सहित विभीषण के घरमें प्रवेश करते भये विभीषणके महिल के मध्य पद्मप्रभु जिनेंद्रका मंदिर रत्नोंके तोरणेंकर मंडित कनकमई उसके चौगिर्दअनेक मंदिर जैसे पर्वतों के मध्य समेरु सोहे तैसे पद्मपभुका मंदिर सोहे सुवर्ण के हजारों थम्भतिनके ऊपर अतिऊंचे देदीप्यमानप्रति विस्तार संयुक्त जिनमंदिर सोहें नानाप्रकारकी मणियोंके समूहकर मंडित अनेक रचनाको धरे अति सुंदर पद्मराग मणिमई पद्मप्रभु जिनेंद्रकी प्रतिमा अति अनुपम विराजे जिसकी कांतिकर मणियोंकी भूमि विष मानों कमलोंका बन फूल रहाहै सो रामलक्ष्मण सीतासहित बंदनाकर स्तुतिकर यथा योग्य तिष्ठे ॥
अथानन्तर विद्याधरोंकी स्त्रियें रामलक्षमण सीताके स्नानकी तयारी करावती भई अनेक प्रकार के सुगन्ध तेल तिनके उबटना किये नासिका को सुगंध और देहीकी अनुकूल पूर्व दिशाकी और स्नान ।
की चौकी पर विराजे बड़ी ऋद्धिकर स्नानको प्रवरते सुवर्ण के मरकत माणके हीरावों के स्फटिक | मणिके इंद्रनीलमाणके कलश सुगंध जलके भरे तिनकर स्नानभया, नाना प्रकारके वादित्र बाजे गीत ||
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