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प पुरा
१८०१
यह विचारणा इस संसार असारमें कौनकौन न भए ऐसा जान शोकतजना अपनी शक्ति प्रमाण जिन धर्म का सेवन करना यह बीतराग का मार्ग संसार सागरका पार करणहारा है सो जिनशासन में चित्त घर अात्म कल्याण करना इत्यादि मनोहर मधुर वचनोंकर विभीषण ने अपने बड़ों को समाधान किया फिर अपने निवास गया अपनी विदग्ध नामा पटराणी समस्त व्यवहार में प्रवीण हजारों राणियों में मुख्य उसे श्रीरामके नौतिवेको भेजी सो आयकर सीता सहित रामको और लक्ष्मणको नमस्कार कर कहती भई हे देव मेरे पतिका घर अापके चरणारविन्द के प्रसंगकर पवित्र करो श्राप अनुग्रह करिवे योग्य हो इसभांति राणी विनती करे है तबही विभीषण अाया अतिओदर से कहता भया हे देव उठिये मेरा घर पवित्र करिए तब आप इसके लार ही इसके घर जायबे को उद्यमी भए नानाप्रकार के बाहन कारी घटा समान गज अति उत्तंग और पवनसमान चंचल तुरंग और मंदिर समान स्थ इत्यादि नाना प्रकारके जे बाहन तिनपर मारूढ अनेक राजा तिन सहित विभीषणके घर पधारे समस्त राजमार्ग सामंतों कर प्राछादित भया विभीषण ने नगर उछाला मेघकी ध्वनि समान वादित्र बाजते भए, शंखों के शब्द कर गिरि की गुफा नाद करती भई झंझा भेरी मृदंग ढोल हजारों बाजते भए लपाक काहल धुन्धु अनेक बाजे और दुन्दभी बाजे दशों दिशा वादित्रों के नादकर पूरीगई ऐसेही तो वादित्रों के शब्द और ऐसेही नानाप्रकार के बाहनोंके शब्द ऐसेही सामंतों के अट्टहास तिनकर दशो दिशा पूरित भई कैयक सिंह शार्दूल पर चढे हैं कैयक केशरी सिंहों पर चढ़े हैं कैयक रथों पर चढ़े हैं कैयक हाथियों पर कैयक तुरंगोंपर चढ़े हैं नाना प्रकार के विद्यामई तथा समान बाहन तिनपरचढे चले नृत्यकारिणीनृत्य करे
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