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पुराण
मन भराशरार की कांति कर पति से मिलाप ही करे है और मानों नेत्रों की ज्योतिरूप जलकर पतिको स्नानही isen करावे है और क्षणमात्र में बढ़ गई है शरीर की लावण्यता रूप संपदा और हर्ष के भरे निश्वास कर मानों
अनराग के भरेबीज बोवे है कैसी है सीता रामके नेत्रों को विश्रामकी भूमि और पल्लवसमान जे हस्त तिन कर जीते हैं लक्ष्मीके करकमल जिसने सौभाग्य रूप रत्नों की खान संपूर्ण चंद्रमा समानहै वदन जिसका चंद्र कलंकी यह निःकलंक विजुरी समान है कांति जिसकी वह चंचल यह निश्चल, प्रफुल्लित कमल समान हैं नेत्र जिसके मुखरूप चंद्रकी चंद्रिका कर अतिशोभाको प्राप्त भई है यह अद्भुत वार्ता है कि कमल तो चंद्रकीज्योति करमुद्रित होय हैं और इस के नेत्र कमल मुख चंद्रमा की ज्योति कर प्रकाश रूपहें कलुपता रहित उन्मत्त हैं.स्तन जिसके मानों कामके कलशही हैं सरल हैचित्त जिसकासो कौशल्याका पुत्र राणी विदेहा की पुत्री को निकट प्रावती देख कथन में न आवे ऐसे हर्ष को प्राप्त भया, और यह रति समान सुन्दरी रमण को प्रावता देख विनय कर हाथ जोड़ खडी अश्रुपात कर भरे हैं नेत्र जिसके जैसे शची इंद्र। के निकट आये रति काम के निकट प्राव दया जिनधर्म के निकट प्राव सुभद्रा भरत के निकट श्रावे तैसे । ही सीता सती गमके समीप बाई सो घने दिनोंका वियोग उसकर खेदखिन्न रामने मनोरथके सैकड़ों कर । पाया है नवीन संगम जिसने सोमहाज्योतिका धरणहाग सजलहैं नेत्र जिसके भुज बंधन कर शोभित जे भुजा उनकर प्राण प्रिया से मिलता भया उसे उरसे लगाय सुख के सागरमें मग्न भया उर से जुदीन कर सके मानों विरह से डरे है और वह निर्मल चित्तकी धरणहारी प्रीतम के कंठ विषे अपनी भुज पांसि डार ऐसी सोहती भई जैसे कल्पवृक्षों से लपटी कल्प बोल सोहे, भया रोमांच दोनों के अंग विष परस्पर ।
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