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रामा 199२॥
खंडों कर भरगर लक्षमण ने रावणको सामान्य शस्त्रों से विहल कीया तब रावणने जानी यह सामान्य शस्त्रों से जीता न जाय तब लक्षमण पर रावणने मेघवाण चलाया सो धरती आकाश जलरूप होय गए तब लक्ष्मणने पवनवाण चलाया क्षणमात्रमें मेधवाण विलयकीया, फिर दशमुखने अग्निबाण चलाया सा दशों दिशाप्रज्ज्वलित भई तव लक्षणने वरुणशस्त्र चलाया सो एक निमिषमें अग्निवाण नाशको प्रातभया फिर लक्षमणने पोपवाण चलाया सो धर्मवाणकर रावणने निवारा फिर लक्षमणने इंधनवाण चलाया सोरावणने अग्निबाण कर भस्मकिया फिर लक्ष्मणने तिमिरखाण चलाया सो अंधकार होय गया अाकाश बृक्षों के समूहकर प्राचादित भया कैसे हैं वृक्ष प्रासार फलों कोवरसावें हैं आसारपुष्पों के पटल छाय गए तब रावणने सर्यवाण कर तिमिवाण निवारा और लक्ष्मणपर नागवाण चलाया अनेक नाग चले विकराल हैं फण जिनके तव लक्ष्मणने गरुड़वाण कर नागवाण निवारा, गरुड़की पापोंकर अाकाश स्वर्ण की प्रभारूप प्रतिभासता भया, फिर राम के भाई ने रावण पर सर्पबाण चलायां प्रलयकाल के मेव समान है शब्द जिसका और विषरूप अग्नि के कणोंकर महाविषम तब रोवण ने मयखाण कर सर्प बाण निवारा और लक्ष्मण पर विघ्नवाण चलाया सो विघ्नबाण दुर्निवार उस का उपाय सिद्धिवाण सो लक्षमण को याद न आया तब वज्रदण्ड श्रादि अनेक शस्त्र चलाए रावण भी सामान्य शस्त्रों से युद्ध करता भया, दोनों योधावोंमें समान युद्ध भया जैसात्रिपृष्ठ औरअश्वग्रीवके युद्ध भया था, तैसा लक्षमण रावण के भया जैसा पूर्वोपार्जित कर्म का उदय होय तैसा ही फल होय तैसी ही क्रिया करे जे महा क्रोध के वश हैं और जो कार्यारंभा उस विषे उद्यमी हैं वे नर तीन शस्त्र को न गिनें और अग्नि को | न गिने सूर्य को न गिने वायु को न गिने ॥ इति चौहत्तरवां पर्व समपूर्णम् ॥
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