________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥१६
॥
| वादित्रोंकेनाद सुनकर योधा विकटहै चेष्टा जिनकी लक्षमणके समीप पाए कोई एक रामकेकटकका
सुभर अपनी स्त्रीको कहताभया हे प्रिये शोकतज पीछे जावो मैं लंकेश्वरको जीत तुम्हारे समीप श्राऊंगा. इस भांति गर्वकर प्रचण्ड जे योधा वे अपनी अपनी स्त्रियों को धीर्य बंधाय अन्तःपुरसे निकसे परस्पर स्पर्धा करते वेगसे प्रेरे हैं वाहन स्थादिक जिन्होंने ऐसे महायोधा शस्त्रके धारक युद्धको उद्यमीभए भूत| स्वननामा विद्याधरोंका अधिपति महाहाथियोंके रथ चढा निकसा गम्भीर है शब्द जिसका इस विधि
और भी विद्याधरोंक अधिपति हर्ष सहित रामके सुभट क्रूर हैं श्राकार जिनके क्रोधायमान होय रावण के योधावोंसे जैसा समुद्र गाजे तैसे गाजते गंगाकी उतंग लहर समान उछलते युद्धके अभिलाषी भए रामलक्षमण डेरावोंसे निकसे कैसे हैं दोनों भाई पृथिवी में व्याप्त हैं अनेक यश जिनके कूर आकारको धरे सिंहोंके रथ चढ बपतर पहिरे महाबलवान उगते सूर्यसमान श्री राम शोभते भए और लक्षमण गरुडकी है ध्वजा जिसके और गरुडक रथ चढा कारी घटा समानहे रंग जिसका अपनी श्यामताकर श्यामकारी हैं दशदिशा जिमने मुकटको धरे कुण्डल पहिरे धनुष चढाय बखतर पहिरे बाण लिये जैसा सांझके समय अंजनगिरि सोहे तैसे शोभताभया । गौतमस्वामी कहे हैं । हे श्रेणिक बडे २ विद्याधर नाना प्रकार के वाहन और विमानोंपर चढे युद्ध करिबेको कटकसे निकसे जब श्रीराम चढे तब अनेक शुभशकुन अानंद के उपजावनहारे भए रामको चढा जान रावण शीघूही महा दावानल समान है श्राकार जिसका युद्धको उद्यमी भया दोनोंही कटकके योधा जे महासामंत तिनपर अाकाशस गंधर्व और अप्प्सरा पुष्पवृष्टि करती भई अंजनगिरिसे हाथी महाबतों के प्रेरे मदोन्मत चले पियादों कर ।
For Private and Personal Use Only