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पा || बल्लभके शस्त्र प्रहारहोय तो पहिले यह संदेशा कहे बगैर मेरे कंथको मत हतियोंयह कहियो हे पद्म भामंडल usyu की बहिन ने तुमको यह कहा है जो तुम्हारे वियोगसे महाशोक के भारकर महा दुःखी हूं मेरे प्राण
तुम्हारे जीवे ही तक, मेरी दशा यह भई है जैसे पवनकी हती दीपक की शिखा हे गजर्षि दशरथ के पुत्र जनककी पुत्री ने तुमको बारम्बार स्तुतिकर यह कही है तुम्हारे दर्शनकी अभिलाषाकर यह प्राण टिक रहे हैं ऐसा कहकर मूर्छितहोय भूमिमें पडी जैसे माते हाथीसे भग्न करी कल्प वृक्ष की बेल गिर पडे यह अवस्था महासतीकी देख रावणका मन कोमल भया परम दुःखीभया यह चिन्ता करताभया अहो कोंकेयोगकर इनका निःसंदेह स्नेह है इनके स्नेहकाचयनहीं और धिक्कारमोको मैं अतिअयोग्य कार्य किया जो ऐसे स्नहेवान युगलका वियोग किया पापाचारी महानीच जन समान में निकारण अपयशरूप मलसे लिप्तभयाशुद्ध चन्द्रमासमान गोत्र हमारा में मलिन किया मेरे समान दुरात्मामेरे बंश में न भया ऐसा कार्य काहूने न किया सो मैंने किया जे पुरुषों में इन्द्र हैं वे नारीको तुच्छ गिने । हैं यह स्त्री साक्षात विषफल तुल्य है क्लेशकी उत्पत्तिका स्थानक सर्पके मस्तककी मणि समान और । महा मोहका कारण प्रथमतो स्त्री मात्रही निषिद्ध हैं और पर स्त्रीकी क्या बात सर्वथा त्याज्यही हैं पर
स्त्री नदी समान कुटिल महा भयंकर धर्म अर्थ की नाश करणहारी सदा सन्तों को त्याज्यही हैं मैं | महा पापकी खान अब तक यह सीता मुझे देवांगनासे भी अति प्रिय भासती थी सो अब विषके कुम्भ | तुल्य भासे है यह तो केवल राम अनुरागिनी है अवलग यह नइच्छती थी परन्तु मेरे अभिलाषा थी अब
जीर्ण तृणवत भासे है यहतो केवल रामसे तन्मय है मोसे कदाचित न मिले मेग भाई महा पण्डित
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