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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्म पुराण 1930 नामा नगर वहां राजा शशिमण्डल राणी सुप्रभा तिनका पुत्र में चन्द्रप्रीतम सो एक दिन प्रकाश में || विचरताथा सो राजा वेलधिक्षका पुत्र सहस्राविजय सो उससे मेरा यह वैर कि में उसकी मांग परणा सो वह मेरा शत्रु उसके और मेरे महा युद्धभया सो उसने चण्डवा नाम शक्ति मेरे लगाई सो में आकाश से अयोध्या के महेन्द्रनामा उद्यान में पड़ा सो मुझे पड़ता देख अयोध्या के धनी राजा भरत आय मेढे भए शक्ति से विदारा मेरा वक्षस्थल देख वे महा दयावान उत्तमपुरुष जीवदाता मुझे चन्दनके जलकर छांय सो शक्ति निकसगई मेरा जैसा रूपथा वैसा होयगया और कुछ अधिक भया वा नरेंद्र भरतने मुझे नवां जन्म दिया जिस से तुम्हारा दर्शनभया यह वचनसुन श्रीरामचन्द्र पूछतेभये कि उस गन्धोदक की उत्पत्ति तू जाने है तब उसने कही हे देव जान हूं तुम सुनो में राजा भरतको पूछी और उसने मुझे कही सो कि यह हमारा समस्त देश रोगों से पीड़ित भया सो किसी इलाज से अच्छा न होय पृथिवी कौन रोग उपजे सो सुनो उरोघात महा दाह ज्वर लाला परिश्रम सवशूल और छिरद सोई फोरे इत्यादि अनेक रोग सर्वदेश के प्राणियों को भए, मानो क्रोध से रोगों की धाड़ ही देश में आई और राजोद्रण मेघ प्रजा सहित नीरोगतव में उस को बुलाया और कही हेमाम तुम जैसे नीरोग हो तैसा शीघ्र मुझे और मेरी प्रजा को करो तब राजा द्रोणमेघने जिसकी सुगन्धता से दशोंदिशा सुगन्ध होय उस जलसे मुझे सींचा सो में चंगा भया और उस जलसे मेरा राज लोक भी चंगा और नगर तथा देश चंगा भया. सर्व रोग निबृत भए सो हजारों रोगों की करणहारी अत्यन्त दुस्सह वायु मर्मकीभेदन हारी उस जलसे जाती रही तब मैंने द्रोणमेघ को पूछा यह जल कहां का है जिससे सर्वरोग का विनाश होय तब द्रोणमेघने For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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