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पुराण ॥१६॥
नहीं पाऊं हूं तो सारिखे योधा को पापी शत्रुने हिना सो कहां मरे मरणका संदेह न किया तो समान पुरुष इस संसारमें और नहीं जो बड़े भाई की सेवा में आसक्त है चित्त जिनका समस्त कुटुम्ब को तज भाई के साथ निकसा और समुद्र तर यहाँ आया ऐसी अवस्थको प्राप्तभया तुझे में फिर देखें कैसा है तू वाल क्रीड़ा में प्रवीण और महा विनयवान महा मिष्ट वाक्य वा अद्भुतकार्यका करणहारा ऐसादिनभी होयगा जो तुझे में देख सर्व देव सर्वथा प्रकार तेरी सहाय करें हैं हे सर्वलोक के मन के हरण हारे त शक्ति की शल्य से रहित होय इस भांति महा कष्ट से शोकरूप जानकी विलापकरे उस भावों से अति प्रीति रूप जे विद्याधरी तिन ने धीर्य बंधाय शांत चित्त करी हे देवि तेरे देवर का अबतक मरने का निश्चय नहीं इस लिये तू रुदन मत करे और महा धीर सामन्तों की यही गति है और इस पृथिवी पर उपाय भी नाना प्रकार के हैं ऐसे विद्याधारियों के वचन सुन सीता किंचित निराकुलभई अब गौतम स्वामी राजा श्रेणिक से कहे हैं हे राजन् अब जो लक्षमणका बृतान्त भया सो सुना एक योधा सुन्दर है मूर्ति जिसकी सो डेरोंके द्वार पर प्रवेश करता भामण्डल ने देखा और पूछा कि त कौन और कहां से आया और कौन अर्थ यहां प्रवेश करें है यहां ठहरोआगे मत जोवो तबावह कहताभया मुझे महीने ऊपर कई दिन गए हैं मेरे अभिलाषा राम के दर्शन की है सो राम का दर्शन करूंगा और जो तुम लक्षमण के जोवने की बांछा करोहो तो मैं जीवने का उपाय कहूंगा जब उसने ऐसा कहा तब भामंडल अति प्रसन्नहोय द्वारे आप समान और सुभट मेल ताहिलार लेय श्रीराम पे आया सो विद्याधर श्रीराम से नमस्कार कर कहता भया हे देव तुम खेद मत करो लक्षण कुमार निश्चय सेती जीवेगा देवगीत
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