________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
पद्म
पुराण ॥७०५ ।।
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
यश पाइए है और यति उदार चेष्टा होय है और पुण्य की विधि प्राप्ति होय है और जैसा साघु सेवा से कल्याण होय वैसा न माता न पिता न मित्रन भाई कोई जीवों को न करे साघु या प्राणी सेवाकी प्रशंसा में लगाया है चित्त जिहोंने जिनेंद्र के मार्ग की उन्नति में उपजी है श्रद्धा जिन के वे राजा बलभद्र नारायण का आश्रय से महा विभूति से शोभते भए भव्य जविरूप कमल तिनको प्रफुल्लित करन हारी यह पवित्र कथा उसे सुनकर ये सर्व ही हर्ष के समुद्र में मग्न भए और श्री राम लक्ष्मण की सेवामें अति प्रीति करते भए और भामंडल सुग्रीव मूर्छा रूपनिद्रासे रहित भएहैं नेत्र कमल जिन के श्रीभगवानकी पूजा करते भए वे विद्यावर श्रेष्ठ देवों सारिखे सर्वथा प्रकार धर्म में श्रद्धा करते भए जो पुण्याधिकारी जीवहैं सो इस लोकनें परम उत्सवके योगको प्राप्तहोय हैं यह प्राणी अपने स्वार्थ से संसार में महिमा नहीं पावे है केवल परमार्थ से महिमा होय है, जैसा सूर्य पर पदार्थको प्रकाश वैसे शोभा पावे है | इति इकसठवां पर्व संपूर्णम्
अथानन्तर श्रीराम के पक्ष के योधा महापराक्रमी रणरीति के वेत्ता शूरवीर युद्धको उद्यमीभए बानरवंशियों की सेनासे आकाश व्याप्तभया और शंख अदिवादित्रों के शब्द और गजकी गर्जना और तुरंगों के हीं सिबे का शब्द सुनकर कैलाशका उठावनाहारा जो रावण अति प्रचंड है बुद्धि जिसकी महामानी देवन सारीखी है विभूति जिसके महाप्रतापी बलवान से तारूप समुद्रकर संयुक्त शस्त्रोंके तेजकर पृथ्वी में प्रकाश करता पुत्र तादिक सहित लंकासे निकसा युद्धको उद्यमी भया दोनों सेना के योधा वखतर पहिर संग्राम के कार वाहनोंसे रूह अनेक ग्रायुधों के धरगुहारे पूर्वोपार्जित कर्म से महाक्रोधरूप
For Private and Personal Use Only