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ब्रद्म
पराया
अथानन्तर रामलक्ष्मण दोनों वीर तेज के मंडल में मध्यवर्ती लक्ष्मी के निवास श्रीवत्स लक्षणको रे | ०४: महामनोज्ञ कवच पहिरे सिंहवाहन गरुडवाहन पर चढ़े महासुन्दर सेना सागर के मध्य सिंहकी और गरुड़की
ध्वजाधरें परपचके चय करनेको उद्यमी महासमर्थ सुभदों के ईश्वर संग्राम भूमिकेमध्य प्रवेश करते भए
अ. लक्ष्मण चला जाय है दिव्य शस्त्र के तेजसे सूर्य के तज को अछादित करता हुआ हनूमान आदि बडेबडे गोधा वानरवंशी तिन कर मंडित वर्णन में न आवे ऐसा देवां कैसा रूप घरे १२ सूर्य की ज्योतीलिये लक्षमण को विभीषण ने देखा सो जगत्को आश्चर्य उपजावे ऐसे तेज कर मण्डित सो गरुडवाहन के प्रताप कर नागपांस का बन्धन भामण्डल सुग्रीव का दूर भया गरुड से पक्षों की पबन क्षीर सागर के जल को क्षोभ रूप करे उस से वे सर्प विलाये गये जैसे साधुवों के प्रताप से कुभाव मिट जाय ans के पतन की कांति कर लोक ऐसे होय गए मानों सुवर्ण के रस कर निरमापे हैं तब भामण्डल सुग्रीव नागपाश से छूट विश्राम को प्राप्त भए मानों सुख निद्रा लेय जागे अधिक शोभते भए तब इन कोदेख श्रीवृक्ष प्रथादिक सब विद्याधर विस्मय को प्राप्तभए और सब ही श्री राम लक्षमण की पूजाकरवनती करते भए हे नाथ आज की सी विभूति हम अब तक कभी न देखी वाहन वस्त्र सम्पदा छत्र ध्वजा में अद्भुत शोभा दीखे है तब श्रीराम ने जब से अयोध्या से चले तब से लेय सर्व वृत्तांत कहा कुलभूषण देशभूषण का उपसर्ग दूर किया सा सब वृत्तांत कहा तिन्हों को केवल उपजा और कही हमसे रुद्रतुष्टायमान भयासो व्यवार उसका चिन्तवनकिया उसमें यहविद्या की प्राप्ति भई तब वे यह कथा सुन परम हर्ष को प्राप्त भए और कहते भए इस ही भव में साधु सेवा से परम
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