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मेंग पद भंग कर ऐसा जानकर इन दोनों के चित्त जुदे कर डारे एक दिन चन्द्र गाय के बेचनेको पुराण
गोपाल के घर गया सो गाय बेचकर वह तो घर आ रहा था पावली को उसी गाय को गोपाल से खरीदकर लावता देखा इस कारण मार्गमें चन्द्र ने प्रावलीको मारा सो म्लेच्छ भया और चन्द्र मरकर बलद भया मलेच्छ ने बलध को भषा मलेच्छ नरक तियच योनि में भूमण कर मूसा भया
और चन्द्र का जीव मार्जार भया, मार्जार ने मुसा भषा फिर ये दोऊ पाप कर्म के योगसे अनेक योनि में भूमण कर काशी में संभ्रम देव की दासी के पुत्र दोऊ भाई भए, एकका नाम कूट और एकका नाम कार्पटिक इन दोनों का संभ्रमदेव ने चैत्यालय की टहलको राखा मरकर पुण्यके योग से रूपानन्द और स्वरूपानन्द व्यंतर भये रूपानन्द तो चन्द्रका जीव और स्वरूपानंद भावली का जीव रूपानन्द तो चय कर कलूंवीका पुत्र कलन्धर भया और स्वरूपानन्द पुरोहित का पुत्र पुष्पभूत भया यह दोनों परस्पर मित्र एक हालीके अर्थ बैरको प्राप्त भये और कुलन्धर पुष्पभूत के मारणेको प्रवृता एक वृक्षके तले साधु बिराजते थे उनसे धर्म श्रवणकर कुलन्धर शान्त भया । राजा ने इस को सामंत जान बहुत बढ़ाया पुष्पभूत कुलन्धर को जिन धर्म के प्रसाद से संपत्तिवान देख करजेनी भया व्रतधर तीसरे स्वर्ग गया और कुलन्धर भी तीसरे स्वर्ग गया स्वर्ग से चयकर दोनों धात की | खण्ड के विदेह में अरिजय पिता और जयावती माता के पुत्र भये एकका नाम अमरश्रुत दूसरेका नाम धनश्रुत यह दोनों भाई बड़े योधा सहस्र शिरसके एतबारीचाकर जगतमें प्रसिद्ध हुवे एकदिन राजा सहस्रशिरस हाथी पकड़ने को बनमें गया दोनों भाई साथ गये बनमें भगवान केवली बिराजे ।
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