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पद्म पुराण ॥६९
जहाज फट जाय है और मगरमछदि वाधा करे हैं और थल में म्ले छ वाधा करे हैं सो सब पाप का फल है पहाड़ समान माते हाथी और नाना प्रकार के आयुध घरे अनेक योधाऔर महातेज को धरे अनेक तुरंग
और वक्तर पहिरे बड़े बड़े सामंत इत्यादि जो अपार सेनासे युक्त जो राजा और निःप्रमाद तो भी पुण्य के उदयविना युद्ध में शरीरकी रक्षा न होयसके और जहां तहां तिता और जिसके कोऊ सहाई नहीं उसकी तप और दान रक्षा करें न देव सहाईनवांधवसहाई औरप्रत्यक्ष देखिए है धनवान शूरवीर कुटम्ब का धनी सर्व कुटम्ब के मध्यमरण करे है कोऊ रक्षा करने समर्थ नहीं पात्रदान से व्रत और शील और सम्यक्त
और जीवों की रक्षा होय है दयादानसे जिसने धर्मन उपार्जा और बहुत काल जीया चाहे सो कैसेरने इन जीवों के कर्म तपविना न विनसें ऐसा जानकर जे पंडित हैं तिनको बैरीयों पर भी क्षमा करनी
क्षमा समान और तप नहीं जे विचक्षण पुरुष बे ऐसी बुद्धि न धरें कि यह दुष्ट विगाड़ करे है इस जीव | का उपकार और विगाड़ केवल कर्माधीन है कर्मही सुःख दुःख का कारण है । ऐसा जानकरजे विचक्षण पुरुष,
हैंबे बाह्य सुःख दुःख का निमित्तकारण अन्य पुरुषों पर राग द्वेषभाव न घरे अंधकार से प्राचादित जो | पंथ उसमें नेत्रवान पृथिवीपर पड़े सर्प पर पग धरे और सूर्य के प्रकाशसे मार्ग प्रकटहोय तव नेत्रवान् सुखसे गमनकरे तैसे जोलग मिथ्यात्वरूप अंधकारसे मार्ग नहीं अवलोके तौलग नरकादि विवरमें पढ़ें,
और जब ज्ञानसूर्य का उद्योत होय तब सुखसे अविनाशापुर जाय पहुंचे ॥ इति उनसठवां पर्व संपूर्णम् ॥ ___अथानन्तर हस्त प्रहस्त, नल नील ने हते सुन बहुत योघा कोधकर युद्धको उद्यमी भए मारी सिंह जघन स्वयंभू शंभू उर्जित शुक सारण चन्द्र अर्क जगत्वीभत्स निस्वन ज्वर उग्र ऋमकर वाचन
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