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पद्म पाया
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रीति है जिसने जिसको मारा सो वहभी उसका मारनहारा है और जिसने जिसको छुडाया सो उसका छुडावन हारा है इस लोकमें यही मर्यादा है एक कुशस्थल नामा नगर वहां दोय भाई निर्धन एक माता के पुत्र इंधक और पल्लव ब्राह्मण खेती का कर्म करें पुत्र स्त्री श्रादि जिनके कुटुम्ब बहुत स्वभावही से दया वान साधुवों की निंदा परांमुख सो एक जैनी मित्र के प्रसंग से दानादि धर्म के धारक भए और एक दूजा निर्धन युगुल सो महा निर्दई मिथ्यामार्गी थे राजा के दान बटासो वित्रों में परस्पर कलह भया सो इंध कपल्लव को इन दुष्टों ने मारा सो दान के प्रसाद से मध्यभोग भूमि में उपजे दोय पल्य की आयु पाय
सो देव भए और वे क्रूर इसके मारणहारे अधर्म परणामों से मूवे सो कालिंजर नामा इन में सूस्या भए मिथ्या दृष्टि साधुवों के निंदक पापी कपटी तिनकी यही गति है फिर तिर्यंचगति में चिरकाल भ्रमण कर मनुष्य भए सो तापसी भए बढ़ी है जटा जिनके फल पत्रादिक के आहारी तीव्रं तपकर शरीर वृश किया कुज्ञान के अधिकारी दोनों मूए सो विजियार्ध की दक्षिण श्रेणि में अरिंजयपुर वहां का राजा अग्निकुमार राणी अश्विनी ताके ये दोय पुत्र जगत् प्रसिद्ध रावण के सेनापति भए और वे दोनों भाई इंधक और पल्लव देवलोक से चयकर मनुष्य भए फिर श्रावग के व्रतपाल स्वर्ग में उत्तम देव भए और स्वर्ग से चय किहकंधपुर में नल नील दोनों भाई भए पहिले हस्त प्रहस्त के जीवने नल नील के जीव मारे थे सो न नील ने हस्त प्रहस्त मारे जो कोहू को मारे है सो उससे भारा जाय है और जो काहू को पाले है सो उससे पालिए है और जो जासू उदासीन रहे है सो भी तासू दासीन रहे जिसेदेख निःकारण क्रोध उपजे सो जानिए परभव का शत्रु है और जिसे देख चित्त हर्षित होय सो निस्संदेह पर भक्कामित्र है जो जल में
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