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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - पुराण ॥६ ॥ पन्न | सागरावर्त धनुष और आदित्य मुख अमोघवाण और जिन के भामंडल सा सहाई सो लोकों से कैसे जीता जाय और बड़े बड़े विद्याधरों के अधिपति जिनसे जाय मिले महेन्द्र मलय हनुमान सुग्रीव त्रिपुर इत्यादि अनेक राजा और रत्नदीप का पति वेलंघरका पति सन्ध्या हरद्वीप हैहयदीप आकाशतिलक कैलीकिल दधिवक्र और महाबलवान विद्या के विभव से पूर्ण अनेक विद्याधर प्रायमिले इसभान्तिके कठोर वचन कहता जो विभीषण उसपर महा क्रोधायमान होय खड्ग काढ़ रावण मारने को उद्यमी भया तब विभीषण ने भी महाक्रोधके बशहोय रोवणसे युद्ध करनेको वज्रमई स्तम्भ उपाड़ाये दोनोंभाई उग्रतेज के धारक युद्धको उद्यमी भए सो मंत्रीयों ने समझाय मने किए विभीषण अपने घरगया रावण अपने महिल गया फिर रावणने कुम्भकर्ण इन्द्रजीत को कठोरचित्त होय कहा कि यह विभीषण मेरे अहित में तत्पर है और दुरात्माहै इसे मेरी नगरीसे निकासोइस अनर्थीके रहिबेसे क्या, मेरा अंगही मोसे प्रतिकूल होय तो मोहि नरुचे जो यह लंकामें रहे और में इसे न मारूतो में रावण नहीं ऐसी वार्ता विभीषण सुनकर कहामें भी क्या स्त्नश्रया का पुत्र नहीं ऐसा कह लंका से निकसा महासामंतों सहित तीस अचौहिणीदल लेयकर समपै चला(तीस चोहणी केलेकभए उसकावर्णन)छहलाख छप्पनहजारएकसौ हाथी और एतेही रप और उगणीसलाख अस्सठहजार तीनसो तुरंग और बत्तीसलाख अस्सी हजार पांच से पयादावियुतघन इन्द्रवज्र इन्द्रप्रचण्ड चपल उडत एका प्रशनि संघातकाल महाकाल ये विभीषण संबंधी परम सामन्त अपने कुठस्न और सब समुदायसहित नानाप्रकार शस्त्रोंसे मंडित रामकी सेनाकी तरफ चले नानाप्रकारके बाहनोंकर युक्त आकाशको श्राछादितकर सर्व परिवारसहित विभीषण हंसद्वीप पायासो For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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