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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पदाकार सिता कस्वती छह साउथ्यो कागज पोर और सहसनयन पावती का साला विचाधर non | की दोऊ श्रेणी का राज करें । पूर्णमेघ का बेटा मेघवाहन भयकर भागा सहस्रनयन के योधा मारने को साथ दौड़े मेघवाहन समोशरण में श्री अजितनाथकीशरण श्राया इन्द्र ने भय का कारण पूछा तब मेघवाहन ने कहा हमारे बाप ने सुलोचन को मारा था सो सुलोचन के पुत्र सहस्रनयन ने चक्र वर्ती का बल पाकर हमारे पिता को मारा और हमारे कधु क्षय किये और मेरे मारने के उद्यम में है सो में मन्दिर में से हंसों के साथ उड़कर श्री भगवान की शरण आया हूं। ऐसा कहकर मनुष्यों के कोठे में बैठा जो सहस्रनयन के योधा इसके मारणे को आये थे वै इसको समोशरण में पाया जान पीछे हट गए और सहस्रनयनसे सकल वृत्तान्त कहातब वह भी समोशरम में आया भगवान के चरणारबिन्द के प्रसाद से दोनों निर्वेर होय तिष्ठे । तब गणधरने भगवानसे इनके पिताका चरित्र पूछा भगवान कहे हैं कि जम्बूद्वीपके भारत क्षेत्रमें सद्रति नामा नगर वहां भावनि नामा बणिक उसके पातकी नामा स्त्री और हरिदास नामा पुत्र भावन चार कोटि द्रव्यका धनी था तो भी लोभ कर व्यापार निमित्त देशान्तरको चला चलते समय पुत्रको सर्व धन सौंपा और द्यूतादिक कुव्यसन | न सेवनेकी शिक्षा दीनी हे पुत्र यह छूतादि (जूवा) कुव्यसन सर्व दोपका कारण है इनको सर्वथा । तजने इत्यादि शिक्षा देकर आप धनतृष्णाके कारण जहाजके द्वारा द्वीपांतर को गया। पिता के गए पीछे पुत्रने सर्व धन वेश्या जूश्रा और सुगपान इत्यादेक व्यासनमें खोया जब सर्व धन जाता रहा और जुआरीनका देनदार हो गया तब द्रव्यके अर्थ सुरंग लगाय राजा के महलमें चोरी को For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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