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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir ६६. मुकटविषे वानरका चिन्हसातातकामदेव हैं । लंकासुन्दगमनमें चितवताभई कि इसने मेरा पितामारा पुराण सो बड़ा अपराध किया यद्यपि द्वेषी है तथापि अनूपसरूपकर मेग्मनको हरे है जो डम महित कामभोग नसेऊतो मेरा जन्म निष्फल है तब विहल होय एक पत्र जिसमें अपना नाम सो वाण कोलगाय चलाया तामें ये समाचार थे हे नाथ देवों के समूह कर नजीती जाऊं ऐसी में सो तुमने काम के वाणों से जीती, यह पत्र बांच हनूमान प्रसन्न होय रथ से उतरे जायकर उस से मिले जैसे काम रति से मिले वह प्रशांतवैर भई संती पासू डारती तातके मरण कर शोकरत तब हनूमान कहते भए हे चन्द्रवदनी रुदन । मत करे तेरे शोक की निवृति होवे तेरे पिता परम क्षत्री महाशवीर तिनकी यही रीति जोस्वामी कार्य के अर्थ युद्ध में प्राण तजें और तुम शास्त्र में प्रवीण हो सो सब नीके जानो हो, इस राज्य में यह प्राणी कर्मों के उदयकर पिता पुत्र बांधवादिक सबकोहणे है इसलिये तुमचार्तिध्यान तजोयेसकलपाणी अपना उपार्जा कम भोगवे हैं निश्चय मरण का कारण प्रायु का अन्त है और पर जीव निमित्त मात्र हैं, इनवचनों से लंकासुन्दरी शोक रहित भई इस सहित कैसी सोहती भई जैसे पूर्णचन्द्र से निशा सोहे प्रेम के समूह कर पूण दोनों मिलकर संग्राम का खेद विस्मरण होयगए दोनों का चित्त परस्पर प्रीति रूप होय गेया तब आकाश में स्तम्भनी विद्याकर कटक थांभा और सुन्दर मायामई नगर बसाया जैसी सांझ की प्रारक्तता होय उस समान लाल देवनके नगर समान मनोहर उसमें राजमहल अत्यन्त सुन्दर सो हाथी घोड़े विमान रथों पर चढ़े बड़े बड़े राजा नगर में प्रवेश करते भए नगर ध्वजावोंकी पंक्ति कर शोभित सो यथायोग्य नगर में तिष्ठे महा उत्साहसे संयुक्त रात्रि में शूरवीरों के युद्धका वर्णन जैसा भया तैसा सामंत करते भए हनूमान का लकासुन्दरी के संग रमता भया । For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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