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प्रय | उसे आया देख पवनका पुत्र महायोंधा युद्ध करिवेको उद्यमी भया तब दोनों सेनाके योधा प्रचण्ड nam नानाप्रकारके बाहनों पर चढ़े अनेक प्रकारके आयुध धरे परस्पर लड़नेलगे वहुत कहनेसे क्या स्वामी
के कार्य ऐसा युद्ध भया जैसा मानके और मार्दवके युद्धहोय अपने २ स्वामीके दृष्टिमें योधा गाज युद्ध करते भए। जीवत विषे नहीं है स्नेह जिनके, फिर हनूमानके सुभटोकर बज्रमुखके योधा क्षणमात्र में दशदिशा भोजे और हनूमानने सूर्य से भी अधिकहै ज्योति जिसकी ऐसे चक्र शस्त्रोंसे बज्रमुख का। सिर पृथ्वीपर डारा यह सामान्य चक्र चक्री अचक्रियोंके सुर्दशनचक होयहै युद्ध विषे पिता का। मरण देख लंकासुन्दरी बज्रमुखकी पुत्री पिताका जो शोक उपजाथा उसे कष्टसे निवार क्रोधरूप विष । की भी तेज तुरंग जुये हैं जिसके एसे स्थपर चढ़ी कुंडलोंके उद्योतसे प्रकाशरूप है मुख जिसका बक हैं भौंह जिसकी उल्कापातका स्वरूप सूर्यमंडल समान तेज धरती क्रोधके बश कर लाल, नेत्र जिस के क्रूरताकर डसे हैं किंदूरीसमान होंठ जिसने मानों क्रोधायमान शचीही है सो हनूमान पर दौडी।
और कहती भई रे दुष्ट मैं तुझे देखा यदि तेरे में शक्ति है तो मोसे युद्ध कर जो के घायमानरावण न करे । सो मैं करूंगी हे पापी तुझे यममन्दिर पठाऊंगी तू दिशाको भूल अनिष्टस्थानको प्राप्त भया ऐसे शब्द कहती वह शीघ्रही आई सो श्रावतीका हनुमानने छत्र उडाय दिया तब उसने बाणोंसे इनका धनुष तोड डारा और शक्तिलेय चलावे उसे पहिले हनूमान बीचही शक्तिको तोडडारी तब वह विद्यावलकर गंभीर बज्रदंडसमान वाण और फरसी बरछी चक्र शतघ्नी मूस न शिला इत्यादि वायुपुत्रके रयपर बरसावती भई जैसे मेघमाला पर्वतपर जलकी मूसल धारा वरसावे नानाप्रकार के श्रायुधोंके समूहसे उसने हनु ।
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