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या नहीं। भावार्य मेरेपुत्र होयगा या नहीं तब मुनिवचन गुप्तभेद इसके संदेह निवाणके अर्थ आज्ञा पुराण करा तेरदोय पुत्र विवेकीहोयमें सो हमदोय पुत्र त्रिगुप्ति मुनिकी आज्ञाभए पीछेभए इसलिये सुगुप्ति । 1५११
और गुप्ति हमारे नाम मातापिताने राखे सो हम दोनों राजकुमार लक्ष्मीकर मंडित सर्व कला के पारगामी लोकों के प्यारे नानाप्रकारकी क्रीडा कर रमते घर में तिष्ठे॥
अथानन्तरएक और वृतांतभया गन्धरती नामा नगरी वहां के राजाका पुरोहित सोम उसके दोय पुत्र एक सुकेतु दूजा अग्निकेत तिनविय अतिप्रीतिसों सुकेतुका विवाहभया विवाहकर यह चिन्ता भई कि कभी इस स्त्रीके योगकर हम दोनों भाइयोंमें जुदायगी न होय फिर शुभकर्मके योगसे सुकेतु प्रति वोधहोय अनन्तवीर्य स्वामीके समीप मुनिभया और लहुराभाई अगिनकेतु भाईके बियोगकर अत्यंत दुखीहोय बाराणसी विषे उग्रतापसभया तब बडाभाई मुकेतु जो मुनिभयाथा सो छोटे भाईको तापस भया जान सम्बोधिवेके अर्थ प्रायवेका उद्यमी भया गुरुपै अाज्ञा मांगी तब गुरुने कहा तू भाईको संबोधा चाहे है तो यह वृत्तान्त सुन तब इसने कही हे नाथ बृत्तान्त क्या तब गुरुने कही वह तुम सों मत पक्ष का वाद करेगा और तुम्हारे वाद के समय एक कन्या गंगा के तीर तीन स्त्रियों सहित आवेगी। गौर है वर्ण जिसका नानाप्रकार के वस्त्र पहिरे दिनके पिछले पहिर अावेगी तो इन चिन्होंकर जान तू भाई से कहियो इस कन्याका कहा शुभ अशुभ होनहार है सो कहो तब वह विलषाहोय तोसे कहेगा मेंतो न जानू तुम जाने हो तो कहो तब तू कहियो इस पुर विषे एक प्रवर नामा श्रेष्ठी धनवन्त उसकी यह रुचिरा नामा पुत्री है सो आज से तीसरे दिन मरणकर कम्बर ग्राम में विलास नामा कन्योके पिता का
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