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पुराव ५६
पद्म | पुष्पादिसे शोभित और जिसके समीप पर्वत ऐसे स्थान को देख दोनों भाई वार्ता करते भये यह कन।
अति सुन्दर ऐसा कह कर रमणीक वृक्ष की छाया में सीता सहित तिष्ठे क्षण एक तिष्ठ कर वहां के रमणीक स्थानक निरख कर जल क्रीड़ा करते भये फिर महा मिष्ट आरोग्य पक्व फल फलों के आहार बनाए सुख की है कथा जिनके वहां रसोई के उपकरण और वासणमाटी के और बांसों के मानो प्रकार तत्काल बनाए, महा स्वादिष्टसुन्दरसुगंध आहार बन के धान सीता ने तैय्यार किये भोजन के समय दोनों वीर मुनिके पायबे के अभिलाषी द्वारापेषण को खड़े उस समय दो चारण मुनि पाएसुगुप्ति और गुप्ति हैं नाम जिनके ज्योतिपटल कर संयुक्तहै शरीर जिनका और सुन्दर है दर्शन जिनका मति श्रुति अवधि तीन बान विराजमान महाव्रत के धारक परमतपस्वी सकलवस्तु की अभिलाषा रहित निर्मल हैं चित्त जिनके मासोपवासी महा धीर बीर शुभचेष्टा के धरणहारे नेत्रोंको आनन्द के करता शास्त्रोक्त । । प्राचार कर संयुक्त है शरीर जिनका सोपाहार को आए सो दूरसे सीताने देखे तक महा हर्षकेभरे नेत्र जिस
के और रोमांच कर संयुक्त है शरीर जिसका पति सो कहती भई हे नरश्रेष्ठदेखो देखोतप करदुर्बल शरीर दिगम्बर कल्याण रूप चारण युगल पाए तब रामने कही हे प्रिये हे पंडिते हे सुन्दरमूर्ति वे साधु कहाँ कहां हैं हे रूप प्राभरणकी घरणहारी धन्यहेंभाग्य ते रेते नै निम्रन्थ युगल देखे जिनके दर्शन से जन्म जन्मके पाप जावें भक्तिवन्त प्राणीके परमकल्याण होय जब इसभांति रामने कही तक्सीतो कहतीभई ये
आर ये भाए तबही दोनों मुनि राम की दृष्टि परे जीव दयाके पालक ईर्या समति सहित समाधान रूप हैं मन जिनके तब श्रीराम ने सीता सहित सन्मुख जाय नमस्कार कर महाभक्ति युक्त श्रद्धा सहित मुनियों।
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