________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
परा
५५०॥
सुख यह सब दुःख ही हैं एक धर्म ही सुखका कारण है महा भक्तिके भरे दोनों भाई परम हर्ष को घरते विनयसे नम्रीभूत हे शरीर जिनके मुनियोंके समीप बैष्ठे उसीसमय असुरके आगमन से महाभयानक शब्द भया मायामई सर्प और बिच्छु तिनकर दोनों मुनियों का शरीर बेष्टित होय गया सर्प अति भयानक महाशब्द के करणहारे काजल समान कारे चलायमान है जिव्हा जिनकी और अनेक वर्णके अतिस्थूल विच्छु तिनसे मुनियोंके अंग बेटे. देख, राम लक्षमण असुरपर कोपको प्राप्त भए । सीता। भयकी भरी भरतारके अंगसेलिपट गई तब आप कहतेभए तू भयमतकरे इसको धीर्य बन्धाय दोनों सुभटोंने निकट जाय सांप विच्छ मुनियों के प्रांगे से दूर किये चरणारविंदकी पूजाकरी और योगीश्वरों की भक्ति बन्दना करतेभये श्रीराम वीण लेय बजावतेभए और मधुर स्वर से गावतेभए और लक्षमण गान करताभया गानमें ये शब्द गाये महा योगीश्वर धीर वीर मन वचन कायकर वन्दनीक हैं मनोय्यहै। चेष्टा जिनकी देवोंकरभी पूज्य महा भाग्यवन्त जिन्होंने अरिहंतका धर्म पाया जो उपमो रहित अखंड महा उत्तम तीन भवन में प्रसिद्ध जे महा मुनि जिन धर्म के धुरन्धर ध्यान रूप वज्र दण्डसे.महामोह रूप शिलाको चूर्ण करडारें और जे धर्म रहित प्राणियों को अविवेकी जान दयाकर विवेकके मार्ग लावें। परम दयालु अाप तिरें औरों को तारें इसभांति स्तुति कर दोनों भाई ऐसे गावें जो बनके तिर्यन्चों के भी मन मोहित भए और भक्ति की प्रेरी सीता ऐसा नृत्य करतीभई जैसा सुमेरुके विषे शची नृत्यकरें जाना है समस्त संगीत शास्त्र जिसने सुन्दर लक्षणको घरेअमोलक हार मालादि महिरे परम लीला कर युक्त दिखाई है प्रकटपणे अद्भुत नृत्यकी कला जिसने सुन्दर है बाहुलता जिसकी हाव भावादिमें प्रवीण
For Private and Personal Use Only