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॥२४॥
कर जरे हैं तुम क्या नहीं जानो हो. ऐसा कह महा विरक्त होय दुःख कर मुर्छित जो सी उसे तज और सर्व कुटुम्ब को तज अठारह हजार गाय और रस्नों कर पूर्ण घर और घर के बालकं स्त्री को सौंप आप सर्वा रम्भ तज दिगम्बर भया स्वामी अनन्त मति का शिख्यमया कैसे अनन्त मातिजमत में प्रसिद्ध तपोनिधि गुणं शील के सांगर यह कपिल मुनि मुरुकी प्रज्ञा प्रमाण महातपकरता भया सुन्दर चारित्र का भार घर परमार्य में लीन है मन जिसका वैराग्य विभूति कर और साधुपद की शोभा कर मंडित हे शरीर जिसका । सा जो विवेकी यह कपिल की कथा पढ़ेमुने उसे अनेक उपवासों का कल होय सूर्य समाम उसकी प्रभाहोय ।। इति पैतीसापर्व सम्पूर्ण भया । ... अथानन्तर वर्णऋतुपूर्ण भई कैसी है वर्षातु श्याम घटा से महा अंधकार रूपजहां मेघ जल असगल बरसे मोर विजुरियों के चमत्कार कर भयानक वर्षा ऋतु'व्यतीत भई शरदऋतु प्रगट भई। दशों दिशा उज्जल मई तब वह यक्षाधिपति श्रीराम से कहता भया कैसे हैं श्रीराम चलने को है मन । जिनका यक्ष कहे है हे देव हमारी सेवामें चूक होयसो क्षमा करो तुम सारिख पुरुषों की सेवा करनेको कोन! समर्थ है तब राम कहतेभए हे यक्षाधिपते तुमसब बातों के योग्य हो और तुम पराधीन होय हमारी सेवा । करी सो क्षमा करियो तब इनके उत्तमभाव बिलोकि अति हर्षित भया नमस्कार कर स्वयंप्रभ नामा हार श्रीराम की भेट किया महा अद्भुत और लक्ष्मण को मणि कुण्डल चांद सूर्य सारिखे भेट किये । और सीता को कुशला नामा चूड़ामणि महा देदीप्यमान दिया और महामनोहर मनवांछित नादकी करनहारी देवो पुनीत वीणादई ये अपनी इच्छा से चले तब स्वराज ने पुरी संकोचलाई और इनके जायबे का बहुत शोच
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