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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्न नाना दिशोंको भाग गई तब अपनी सेना का भंग जान और बहुत म्लेछ वक्तर पहिराए सो वेभी लीलामात्र में जीते तब वे सब म्लेछ धनुष वाण डार पुकार करते पतिप जाय सारा वृत्तान्त कहतेभए ॥५११॥ तब वे सब म्लेछ परम क्रोधकर धनुषवाण लीए महाँ निर्दई बडी सेनासे आये शस्रोंके समूहसे संयुक्त वे काकोदन जातिके म्लेछ पृथिवी पर प्रसिद्ध सर्व मांस के भक्षी राजोंकरभी दुर्जय वे कारी घटा समान उमंडि आये तब लचमण ने कोपकर धनुष चढ़ाया तब बन कम्पायमान भया वनके जीव कांपने लग गए तब लक्षमण ने धनुष के शर बांधा तब सब म्लेछ डरे बनमें दशों दिश प्रांधे की न्याई भटकते भए तब मा भयकर पूर्स म्लेकोंका अधिपति स्थसे उतर हाथ जोड़ प्रणामकर पायन पडा अपना सब । वृतांत दोनों भाइयों से कहता भया । हे प्रभो! कौशांबी नाम नगरी है वहां एक विश्वानल नाया ब्राह्मण अग्निहोत्री उसके प्रसिसंन्यानामास्त्री तिन केरौद्रभूतनामा पुत्र सो दूतकला में प्रवीण बाल अवस्थाही ॥ से क्रूर फार्म काकरणहारा सो एक दिन चोरी से पकड़ा गया और सूली देने को उद्यमी भए तब एक दयावान् ने बुड़ाया सो में कांपता देश तज यहां पाया कर्मानुयोग कर काकोदन जाति के म्लेवों का पति भया महाभ्रष्ट पशु-समान व्रत किया रहित तिहूं हूं अबतक महासेना के अधिपति बड़े बड़े राजा मेरे सन्मुख युद्ध करने को समर्थन भए मेरी रष्टिगोचर न पाए सो मैं पाप के दर्शन मात्र ही से वशीभत भया धन्यभाग्य मेरे जो मैंने तुम पुरुषोत्तम देखे अब मुझे जो प्राङ्गा देवो सो करूं श्रापका किंकर श्रापके चरणारविन्द की पावड़ी सिरपुरघरू और यह विन्ध्याचल पर्वत और स्थान निधि कर पूर्ण है, श्राप यहां राज्य करो में तुम्हारा दास ऐसा कहकरम्लेक मूर्खासायकर पायनपड़ा जैसेवृक्षनिर्मूलहोयगिरपड़े उसकोविहल | For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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