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पद्म
परा
いさき
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सुख से तिष्ठे और आहारकी सामग्री निमत्त लक्षमण गए सिंहोदर के कटक में प्रवेश करते कटक के रक्षकजो मनुष्य उन्होंने मने किये तब लक्षमण ने विचारी कि ये दरिद्री और नीच कुल इनसे में विवाद करूं यह विचार नगरकी ओर आए सो नगरके दरवाजों में अनेक योधा बैठेथे और दरवाजे के ऊपर बज्रकरण तिष्ठाथा महासावधान सो लक्षमणको देख लोग कहते भए तुम कौन हो और कहां से कौन अर्थ आहो तव लक्षणने कही दूरसे आए हैं और आहार निमित्त नगर में जाते हैं तब वज्रइनको अति सुन्दर देख आश्चर्यको प्राप्तभया और कहताभया हे नरोत्तम भीतर द्याजावो तब यह गढ़में कर्ण बहुत आदरसे मिला और कहताभयो कि भोजन तय्यार है सो प कृपाकर यहांही भोजनकरो तब लक्षमणने कही मेरे गुरुजन बड़े भाई और भावज श्रीचन्द्रप्रभुके चैत्यालय में बैठे हैं तिनको पहिले भोजन कराय फिर में भोजन करूंगा तब वज्रकर्णने कही बहुत भलीवात वहां जाइये उन योग्य सब सामग्री है सो ले जावें अपने सेवकों हाथ उसने भान्ति भान्तिकी सामग्री पठाई सो लक्षण लिवाय लाए श्रीराम लक्षमण और सीता भोजन कर बहुत प्रसन्नभए श्रीराम कहते भए हे लक्ष्मण देखो वेज्रकर्ण की बड़ाई जो ऐसा भोजन कोई अपने जमाई को भी न जिमावे सो दिन वाकिफ़ी अपने तांई जिमाए पीने की वस्तु महा मनोहर और व्यंजन महामिष्ट यह अमृत तुल्य भोजन जिस कर मार्गका खेद मिटा और जेठ के चाताप की तपत मिटी चान्दनी समान उज्ज्वल दुग्ध महा सुगन्ध जिस पर भ्रमर गुञ्जार करें और सुन्दर घृत सुन्दर दधि मानों कामधेनुके स्तनों से उपजाया दुग्ध उससे निरमाया है ऐसे भोजन ऐसे रस और ठौर दुर्लभ हैं, उस पंथी ने पहिले अपने तांई कही थी कि यह
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