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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्म सिंहोदरसे कह है है नाथ वज्रकर्णकी यह विनती है कि देश नगर भण्डार हाथी घोड़े सब तुम्हार हैं सो लेवो पुरा मुझे स्त्री सहित धर्म द्वार देय का दे देवो मेरा तुमसे उजर नहीं परन्तुमें यह प्रतिज्ञा करी है कि जिनेन्द्रमुनि ॥ ४९८ ॥ और जिनवाणी इन बिना औरको नमस्कार न करूं सो मेरा प्राणजाय तो भी प्रतिज्ञा भंग न करूं तुम मेरे द्रव्य के स्वामीहो आत्माके स्वामी नहीं यह वार्तासुन सिंहोदर अति क्रोधको प्राप्तभया नगरको चारों तरफ से घेरा और देश उजाड़दिया सो दलिद्री मनुष्य श्रीराम से कहे हैं हे देव देश उजाड़ने का कार मैं तुमसे कहा अब में जाऊंहूं जहांसे नजदीक मेरा ग्राम है ग्राम सिंहोदरके सेवकोंने जलाया लोगों के विमान तुल्य घरथे सो भस्म भए मेरी तृण काष्ठ कर रची कुटी सोभी भस्म भई मेरे घर में एक बाज एक माटी का घट एक हांडी यह परिग्रहथा सो लाऊंहूं मे रे खोटी स्त्री उसने क्रूर वचन कह मुझे भेजा है और वह बारम्बार ऐसे कहे है कि सूने गांवमें घरोंके उपकरण बहुत मिलेंगे सो जाकर ले आवोसो मैं जाऊं हूं मेरे बड़े भाग्य जो आपका दर्शनभया स्त्री ने मेरा उपकारकिया जो मुझे भेजा वह बचन सुन श्रीराम महादयावान ने पंथीको दुखी देख अमोलक रत्नोंका हार दिया सो पंथी प्रसन्न होय चरणार विंदको नमस्कार कर हारले अपने घर गया द्रव्यकर राजावों के तुल्य भया ।। अथानन्तर श्रीराम लक्षमण से कहते भए कि हे भाई यह जेष्ठ का सूर्य अत्यन्त दुरसह जब अधिक न चढे उससे पहिलेही चलो इस नगरीके समीप निवास करें सीता तृषाकर पीड़ित हैं सो इसे जल पिलावें और आहारकी विभी शीघ्र ही करें ऐसा कहकर वहांसे आगे गमन किया सो दरांगनगर के समीप जहां श्रीचन्द्रप्रभु का चैत्यालय महा उत्तम है वहां आये और श्रीभगवानको प्रणाम कर For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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