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पक्ष
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पुराण हैं तुम रक्षा करो, यह कितनेक फल युक्त वृक्ष पृथ्वी पर प्रगट भए हैं इनकी विधि हम जानते नहीं हैं, इनमें कौन भक्ष्य है कौन अभक्ष्य है, और गाय भैंसके थनोंसे कुछ झिरे है पर वह क्या है और यह व्याघ्रसिंहादिक पहले सरलथे अब वक्रता रूप दीखे हैं. और यह महा मनोहर स्थल पर और में पुष्प दीखे हैं सो क्या हैं, हे प्रभु तुमारे प्रसाद कर आजिविका का उपाय जानें तो हम सुख स जीवें । यह बचन प्रजा के सुनकर नाभिराजाको दया उपजी, नाभिराजा महावीर तिन सो कहते भये कि इस संसार में ऋषभदेव समान और कोई भी नहीं जिनकी उत्पत्तिमें रत्नोंकी कृष्टि भई और इन्द्रादिक देवका आगमन भया, लोकों को हर्ष उपजा, वह भगवान महा अतिशय संयुक्त हैं तिनके निकट जाकर हम तुम आजीवका का उपाय पूछें भगवान का ज्ञान मोह तिमिर से त तिष्ठा है प्रजा सहित नाभिराजा भगवानके समीप गये और समस्त प्रजा नमस्कार कर भगवानकी स्तुति करती भई, हे देव तुम्हारा शरीर सर्वलोक को उलंघकर तेजोमय भासे है सर्व लक्षण संपूर्ण महा शोभायमान हैं और तुम्हारे अत्यन्त निर्मल गुण सर्व जगत्में व्याप रहे हैं वह गुण चन्द्रमा की किरण समान उज्ज्वल महा आनन्द के करण हारे हैं । हे प्रभु हम कार्य के अर्थ तुम्हारे पिता के पास आये थे सो यह तुम्हारे निकट लाये हैं तुम महा पुरुष महा बुद्धिमान् महा अतिशय कर मंडित हो जो से बड़े पुरुष भी तुमको सेवें हैं इस लिये तुम दयालु हो हमारी रक्षा करो क्षुधा, तृषा हरनेका उपाय कहो और जिससे सिंहादिक क्रूर जीवोंका भी भय मिटे सो उपाय बताओ तब भगवान कृपानिधि कोमल है हृदय जिनका इन्द्रको कर्म भूमिकी रीति प्रकट करने की आज्ञा करते |
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