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पद्म
पुराया
४१।।
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कर शरीर बृद्धिको प्राप्त भये प्रभुकी वय ( उमर ) प्रमाण इन्द्रने देवकुमार रक्खे उन सहित निःपाप क्रीड़ा (खेल) करतेभ ये वह क्रीड़ा माता पिता को अति सुखकी देनहारी है ॥
अथानन्तर के भगवान् के आसन शयन सवारी बस्त्र आभूषण अशन पान सुगन्धादि विलेपनन गात नृत्य वादिनाकि सर्वं सामग्री देवोपनीत होती भई थोडेही काल में अनेक गुणोंकी वृद्धि होती भई रूप उनका अत्यन्त सुन्दर जो वर्णन में न यावे मेरुकी भीति समान महा उन्नत महा दृढ़ वक्षस्थल शोभ ता भया और दिग्गज के थम्भ समान बाहु होती सई वह बाहु जगत् के अर्थ पूर्ण करने को कल्पवृ ही हैं और दोऊ जंघा त्रैलोक्यरूप घरके थांभवेको थम्भही हैं और मुख महासुन्दर मनोहर जिसने अपनी कांति से चन्द्रमाको जीता है और दीप्ति से जीता है सूर्य्य जिसने और दोऊ हाथ कोपल से भी अति को मल और लाल हथेली और केश महासुन्दर सघन दीर्घ बक्र पतले चीकने श्याम हैं मानों सुमेरु शिखर पर नीलाचलही विराजे है और रूप महा अद्भुत अनुपन सर्व लोक के लोचनको प्रिय जिसपर अनेक कामदेव वारे जा सर्व उपमाको उलंघें सर्वका मन और नेत्र हरें इसभांति भगवान् कुमार - स्था में भी जगत् को सुखदायक होते भये उस समय कल्पवृक्ष सर्वथा नष्टभए और विना वाहे धान अपने यापही उगे उनसे पृथिवी शोभती भई और लोक निपट भोले षट कर्मसे अनजान उन्हों ने प्रथम ई रसका आहार किया वह थाहार क्रांति वीर्यादिक के करनेको समर्त है के एक दिन पीछे लोगों को क्षुधा वघी जो ईतुरस से तृप्ति न भई तब लोक नाभिराजा के निकट आए और नमस्कारकर विनती करते भए कि हे नाथ कल्प वृक्ष समस्त क्षय हो गये और हम क्षुधा तृषा कर पीड़ित हैं तुमारे शरण आये
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