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पद्म
॥४८५॥
तशातकी मालती आदि पृथ्वी के सुगन्ध पुष्पोंकर भगवान को रच सौ पुष्पविमानको पाय यथेष्ट पुराण क्रीड़ा करे और जो जिनराजपै अगर चन्दनादि धूपखेखेसो सुगन्धशरीरका धारक होय और जो गृहस्थी जिन मंदिर में विवेक सहित दीपोद्योत करे सो देवलोक में प्रभाव संयुक्त शरीर पावे और जो जिन भवनमें छत्र चमर झालरी पताका दर्पणादि मंगल द्रव्यचढ़ावे और जिनमंदिरको शोभित करे सो श्वर्यकारी विभूति पावे और जो जल चन्दनादिसे जिन पूजा करे सो देवोंका स्वामीहोय महानिर्मल सुगन्ध शरीर जे देवांगना तिनका वल्लभहोय और जो नीरकर जिनेंद्रका अभिषेक करे सो देवों कर मनुष्यों से सेवनीक चक्रवर्ती होय जिसका राज्याभिषेक देव विद्याधर करें और जो दुग्धसे अरहन्त का सो क्षीरसागर के जल समान उज्ज्वल विमान में परम कांति धारक देव होय फिर मनुष्य होय मोत पावे और जो दधिकर सर्वज्ञ बीतरागका अभिषेक करे सो दधिसमान उज्ज्वल यशको पत्य कर भवधिको तरे और जो घृतकर जिननाथका अभिषेककरे सो स्वर्ग विमान में महा बलवान देव ही मरम्परा अनन्तवीर्यको घरे और जो ईपरसकर जिननाथका अभिषेक करे सो अमृतका आहारी सुरेश्वर होय नरेश्वर पदपाय मुनीश्वर होय अविनश्वर पदपावे अभिषेक के प्रभावकर अनेक भव्य जीव देवोंसे इन्द्रोंसे अभिषेक पावतेभए तिनकी कथा पुराणों में प्रसिद्ध है जो मककर जिनमंदिरमें मसूर विच्छादिककर बुहारी देय सो पापख्य रजसे रहितहोय परम विभूति आरोग्यता पावे और जो गीत नृत्यवादित्रादिकर जिनमंदिरमें उत्सव करे सो स्वर्ग में परम उत्साहको पावे और जिनेश्वर के चैस्यालंब करावे सो उसके पुरायकी महिमा कौन कह सके सुरमंदिरके सुख भोग परम्पराय अविनाश धाम
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