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पद्म
पुराण
॥ २७ ॥
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शरण को चले । आगे आगे बन्दीजन बिरद बखानतें जाय हैं, राजा समोशरण के पास पहुंचे, समोशरण में अनन्त महिमा के निवास महाबीर स्वामी विराजे हैं, उन के समीप गौतम गणधर तिष्ठे है तत्वों के व्याख्यान में तत्पर और कांति में चन्द्रमा के तुल्य दीप्ति, प्रकाश में सूर्य के समान, जिन के हाथ और चरण वा नेत्ररूपी कमल अशोक वृक्ष के पल्लब (पत्र) समान लाल हैं और अपनी शांतता से जगत् को शान्ति करे हैं, मुनियों के समूह के स्वामी हैं । राजा दूर से ही समोशरण को देख कर हाथी से उतर कर समोशरण में गए, हर्ष कर फूल रहे हैं मुख कमल जिन के सो भगवान् की तीन प्रदक्षिणा दे हाथ जोड़ नमस्कार कर मनुष्यों की सभा में बैठे
॥
राजा श्रेणिक ने श्री गणघर देव को नमोस्तुते कह कर समाधान ( कुशल ) पूछ प्रश्न किया कि भगवान् मेरेको राम चरित्र सुनने की इच्छा है यह कथा जगत् में लोगोंने और भांति प्ररूपी है इसलिये हे प्रभो कृपा कर सन्देह रूप कीचड़ से बहुत जीवों को काढ़ो ॥
राजा श्रेणिक का प्रश्न सुन श्री गणधर देव अपने दांतों की किरण से जगत् को उज्ज्वल करते गम्भीर मेघकी ध्वनि समान भगवान् की दिव्य ध्वनि के अनुसार व्याख्यान करते भए, हे राजा ! तू सुन मैं जिन आज्ञा प्रमाण कहूं हूं, जिन बचन तत्व के कथन में तत्पर हैं, तुम यह निश्चय करो किं रावण राक्षस नहीं मनुष्य है मांस का आहारी नहीं विद्याधरों का अधिपति है, राजा बिनमि के वंस में उपजा है, और सुग्रीवादिक बन्दर नहीं यह बड़े राजा मनुष्य हैं, विद्याधर हैं। जैसे नीव विना मन्दिर को चिना न होग तैरी जिन वचन रूपी मूल बिना कथा की प्रमाणता नहीं होय है इस लिये प्रथम
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