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पद्म
पुरःया
॥२६॥
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यह मनुष्य जो इन्द्र के कोपमात्र से ही भस्म हो जाय, जिस के रावत हस्ती, वज्रसा प्रायुष, जिस की ऐसी सामर्थ कि सर्व पृथिवी को वश कर ले, सो ऐसे स्वर्ग के स्वामी इन्द्रको यह अल्प शक्तिका घनी मनुष्य विद्याधर कैसे लाकर बन्दी में डारे, मृग से सिंहको कैसे बाधाहोय तिलसे शिलाको पीसना और गिडो से सांप का मारना और श्वान से गजेन्द्र का हनना कैसे होय, और लोक कहे हैं कि श्रीराम चन्द्र मृगादिक की हिंसा करते थे परन्तु यह बात न बने, वे बती- विवेकी दयावान् महापुरुष कैसे जीवों की हिंसा करें और कैसे अभक्ष्य का भक्षण करें, और सुग्रीव का बड़ा भाई बाली को कहे हैं कि उस
सुग्रीव की स्त्री अङ्गीकार करी मरन्तु बड़ा भाई जो बाप समान है कैसे छोटे भाई की स्त्री अङ्गीकार करे, सो यह सर्व बात सम्भवे नहीं इसलिये गणधर देवको पूछकर श्रीरामचन्द्र की यथार्थ कथा श्रवण करूंगा, औसा विचार श्रेणिक महाराज ने किया और मनमें विचारे हैं कि नित्य गुरुजीका दर्शन किये
के प्रश्न किए तत्व निश्चय किए से परम सुख होय है ये आनन्द के कारण हैं जैसा विचार कर राजा सेज से उठे और रानी अपने स्थानको गई, रानी जिसकी कांति लक्ष्मी समान है, महा पतिव्रता और पतिकी बहुत विनयवान है, और राजा जिसका चित्त अत्यन्त धर्मानुराग में निष्कम्प है दोनों प्रभात क्रिया का साधन करते भये और जैसे सूर्य्य शरदके बादलों से बाहिर यावे तैसे राजा सुफेद कमल समान उज्ज्वल सुगन्ध महल से बाहिर धावते भए, उस सुगन्ध महल में भंवर गंजार करे हैं । राजा सभा में आकर विराजे और प्रभात समय जो बड़े बड़े सामन्त आए उन को द्वारपाल ने राजा का दर्शन कराया, सामन्तोंके वस्त्र आभूषण सुन्दर हैं उन समेत राजा हाथी पर चढ़ कर नगर से समो
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