________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्म
पुराख
॥३४१॥
के और अतिसम्पदा दीनी और कर्ण कुण्डलपुर का राज्य दिया अभिषेक कराया उस नगरमें हनुमान सुखसे विराजे जैसे स्वर्गलोकमें इन्द्रविराजे तथा किहकूपुरनगरका राजा नल उसकी पुत्री हरमालिनी नामा रूपसम्पदाकर लक्ष्मीकी जीतनेहारी सो महा विभूतिसे हनुमानको परणाई तथा किन्नरगीत नगरविषे जे किन्नरजातिके विद्याधर तिनकी सौ पुत्री परणी इसभांतिएक सहमराणी परमीटवी विषे हनुमानकाश्रीशैल नाम प्रसिद्धभया क्योंकि पर्वतकी मुफामें जन्म भयाथासोपहाड़पर हनुमानायनिकसे सो देख अतिप्रसन्नभए रमणीक तलहटी जिसकी वह पर्वतभी पृथ्वी विषे प्रसिद्ध भया ।
अयानंतर किहकंधनगर विषेराजासुग्रीव उसके राणी सुतारा चन्द्रमासमान कांतिको घरे है मुख जिसका श्रोर रातिसमानहै रूप जिसका तिनके पुत्री पद्मराग नवीनकमल समानहे रंग जिसका और अनेक गुणांस मंडित पृथ्वीपर प्रसिद्ध लक्ष्मी समान सुन्दरी ने जिसके ज्योति मग्लसे मंडितहै मुखकमल जिसका और महा गजराजके कुम्भस्थल समान ऊंचे कठोरहें स्तन जिसके और सिंह समानहै काटि जिसकी महा विस्तीर्ण और लावण्यता रूप सरोवरमें मग्न है मूर्ति जिसकी जिसे देख चिस प्रसन्न | होय शोभायमानहै चेष्टा जिसकी ऐसी पुत्रीको नवयोवन देख माता पिताको इसके परणायवेकी चिंता । भई इसे योग्य वर चाहिये सो माता पिताको सतदिन निद्रा न आवे और दिनमें भोजनकी सचिगई चिन्ता रूप है चित्त जिनका तब रावण के पत्र इन्द्रजीत आदि अनेक राजकुमार कुलवान शीलवान तिनके चित्रपट लिखे रूप लिखाय सखियोंके हाथ पुत्री को दिखाए सुन्दरहै कांति जिनकी सो। | कन्याकी दृष्टिमें कोई न आया अपनी दृष्टि संकोच लीनी और हनुमानका चित्रपट देखा सो उसे देख
मान
For Private and Personal Use Only