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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir पद्म पुरात ॥३३॥ सहित पाया जानकर वरुणकी प्रजा भयभीतभई पातल पुण्डरीकनगरका वह भनी सो नगरमें गोघावों के महा शब्द होतेभए योषा नगर से निकसे मानो वह योधा असुरकुमार देवों के समान हैं और वरुण चमरेन्द्र तुल्य है महा शूरवीर पने में गर्वित और वरुण के सौ पुत्र महा उद्धतयुद्ध करनेको पाए नाना प्रकार के शस्त्रों के समूह से रोका है सूर्य का दर्शन जिन्होंने सो वरुण के पुत्रों ने आवतेही रावणका कटक ऐसा न्याकुल किया जैसें,असुरकुमार देव चुद्रदेवोंको कम्पायमोनकरें वक्र, धनुष, वन, सेल, बरछी इत्यादि शत्रों के समूह राक्षसों के हाथ से गिरपड़े और वरुण के सौ पुत्रों के आगे राक्षसों का कटक ऐसे भूमताभया जैसे वृषमणि का समूह निपातके भय से भमे तब अपने कटकको व्याकुल देख रावण वरुण के पुत्रों पर गया जैसे गजेन्द्र वृक्षोंको उपाड़े तैसे बड़े बड़े योधावों को उपाड़े एक तरफ रावण अकेला एकतरफ वरुण के सौ पुत्र सो यद्यपि उनके बाणों से रावणका शरीर भेदागया तथापि रावण महा योषा ने कछु न गिना जैसे मेघके पटल गाजते वर्ष ते सूर्य मण्डल को पालादित करें तैसे वरुण के पत्रोंने रावणको बेढ़ा और कुम्भकरण इन्द्रजीतसे वरुण लड़ने लगा जब हनूमानने रावण को वरुण केपुत्रोंकर' वेध्या के सूला के रंग समान रक्त शरीर देखा तब रथमें असवार होयं वरुणके पुत्रों पर दौड़ा कैसा है हनूमान रावणसे प्रीतियुक्त है चित्त जिसका और शत्रुरूप अन्धकार के हरिबे को सूर्य समान. है पवनके बेग सेभी शीघ्र वरुणके पुत्रोंपर गया सो हनूमान से वरुण के पुत्र सोही कम्पायमान भए जैसे मेघ के समूह पवन से कम्पायमान होंय और हनूमान वरुण के कटक पर ऐसा पड़ा जैसा माता हाथी कदली के बनमें प्रवेश करे कईयोंको विद्यामई लांगूल पाशकर बांधलिया और कईयोंको मुद्गरके For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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