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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पन पुराण ॥३३॥ श्रवण करता हनूमान् रावणके निकट गया रावण हनुमानकोदेखकर सिंहासन से उठे और बिनयकिया | कैसा है सिंहासन पारिजातादिक कहिये कल्पवृक्षों के फूलों से पूरित है जिसकी सुगंध से भ्रमर गुंजार करे हैं जिसके स्नोंकी ज्योतिकर आकाश विषे उद्योतहोय रहा है जिसके चारों ही तरफ बड़े सामंत हैं ऐसे सिंहासन से उठकर सवणने हनूमान को उर से लगाया कैसाहै हनूमान रावणके विनयकर नमभूत हो | गया है शरीर जिसका सवय हनूमान को निकट ले बैदा प्रीति कर प्रसन्नहै मुख जिसका परस्पर कुशल | पूछी परस्पर रूप सम्पदा देख हर्षित भए दोनों महाभाग्य ऐसेमिले मानो दोय इन्द्र मिले रावण अति स्नेह से पूर्ण है मन जिसका सो कहताभया पवनकुमास्ने हमसे बहुत स्नेह बढ़ायाजो ऐसा गुणोंकासागरपुत्रहमपर पाया ऐसे महाबली को पायकर मेरे सर्व मनोरथ सिद्ध दोवेंगे ऐसा रूपवान ऐसा तेजस्वी और नहीं जैसा यह योषा सुनाथा तैसाही है इसमें संदेह नहीं यह अनेक शुभ लक्षणोंका भराहै इसके शरीर का प्राकारही मुसीक्ये प्रकटकरे है सबपने जब हनुमान के गुण वर्णन कियेतव हनूमान नीचा होयरहा लज्जा कन्त पुरुषकी न्याई नमीभूत है शरीर जिसका-सो संतोंकी-यही रीतिहै अबरोवणका वरुणसे संग्राम होयगा । सो मानों सूर्य भयकर अस्तहोने को उधमीभया मन्दहोगई है किरण जिसकी सूर्य अस्त भएपीछे संध्या प्रकरभई फिरगई सो मानों प्राणनाथकी घिनक्वन्ती पतिमा श्रीही है और चन्द्रमा रूप तिलक को परे रात्री रूप स्त्री शोभतीभई फिर ममातभया साकी किरणीले पृषिधीपरप्रकाशमया तब रावणसमस्त सेना को लेय युद्धका उद्यमी भयाः हनमान विद्या कर समुद्र को भेद वरुण के नगर में गया वरुण पर जाता हनुमान ऐसी कातिको घरता भया जैसा सुभूम चक्रवर्ती परशुरामके ऊपर जाता शामे है रावणको कटक For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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