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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुराण ।३२६॥ ऐसे पुत्रको देख माता बहुत विसमयको प्राप्त भई उठोय सिर चूमा और छाती से लगा लिया तब प्रति | सूर्य अंजनी से कहताभया हे बालके यह बालक तेरा सम चतुर संस्थान वज्र बृषभ नाराच संहनन का धारनहारा महा वजूका स्वरूप है जिसके पड़नेकर पहाड़ चूर्ण होयगया जब इस बालककीही देवों से अधिक अद्भुत शक्ति है तो यौवन अवस्था की शक्ति का क्यो कहना यह निश्चय सेती चरमशरीरी है। तद्भव मोक्षगामी है फिर देह न धारेगा इसकी यही पर्याय सिद्ध पदका कारण है ऐसा जानकर तीन प्रदक्षिणा देय हाथ जोड़ सिर नवाय अपनी स्त्रियों के समूह सहित बालकको नमस्कार करताभया यह बालक उसकी जे स्त्री तिनके जे नेत्र तेई भए श्यामश्वेत अरुण कमल तिनकी जे माला तिनसे पूजनीक अति रमणीक मन्दमन्द मुलकनका करणहारा सबही नरनारियोंका मनहरे राजाप्रति सूर्य पुत्रसहित अञ्जनी भानजीको विमान में बैठाय अपनेस्थानमें सेाया कैसाहै नगर ध्वजा तोरणों से शोभायमा है राजा । आया सुन सर्व नगर के लोक नाना प्रकार के मङ्गल द्रब्यों सहित सन्मुख पाए राजा प्रति सूर्य ने राजमहलमें प्रवेश किया वादित्रों के नादसे व्याप्त भई हैं दशों दिशा जा बालकके जन्मका बड़ा उत्सव विद्याधरों ने किया जैसा स्वर्गलोक विषे इन्द्रकी उत्पत्तिका उत्सव देख करे हैं पबतविषे जन्म पाया और विमान से पड़कर पर्वतको चूर्णकिया इससिये बालकका नाम माता और बालक के मामाप्रति सूर्यने श्री शैल ठहराया और हनूरुहदीप विषे जन्मोत्सवभया इसलिये हनूमान यह नाम पृथिवीविषे प्रसिद्धभया बह श्रीशैल (हनूमान) हनूरुहपुरमें रमें कैसाहै कुमार देवों समानहे प्रभा जिसकी महाकान्तिवान सबको महा उत्सवरूपहै शरीरकी क्रिया जिसकी सर्बलोकके मन और नेत्रोंका हरनेहारा प्रतिसूर्यके पुर विषे विराजे है। - - - For Private and Personal Use Only
SR No.020522
Book TitlePadmapuran Bhasha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
PublisherDigambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publication Year
Total Pages1087
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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